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जिनसलमा टीका .. विश्वासु विद्यासु स्वसमय परसमयसम्बन्धिनीषु विद्यासु लोकप्रमाणप्रसिद्धासु चतुर्दशसु ईशः समर्थः विश्वविद्येश: । कास्ता: स्वसमयविश्वविद्या एकादशांगानि, चतुर्दशपूर्वाणि चतुर्दशप्रकीर्णकानि च।।
स्वसमय, परसमय सम्बन्धी जो लोकप्रसिद्ध तथा प्रमाणप्रसिद्ध चौदह विद्यायें हैं उनके जिनेश ईश समर्थ हैं, वे स्वसमय विद्याएँ कौनसी हैं? आचारांग
आदि ग्यारह अंग, उत्पादादिक चौदह पूर्व और सामायिक आदि चौदह प्रकीर्णक ये स्वसमय सम्बन्धी चौदह विद्यायें हैं - कास्ताः परसमय चतुर्दश विद्या इति चेत् -
षडंगानि, चतुर्वेदाः, मीमांसा न्यायविस्तरः। धर्मशास्त्रं पुराणं च विद्या एताश्चतुर्दश ॥
अर्थ : शिक्षा, कल्प, व्याकरण, ज्योतिष, छंद, निरुक्त ये छह अंग हैं, ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद ये चार वेद हैं। मीमांसा, पूर्व मीमांसा, उत्तरमीमांसा मिलकर एक मीमांसा है। न्यायविस्तर, नीतिशास्त्र, धर्मशास्त्र ये अठारह स्मृतियाँ एवं अठारह पुराण ये परसमय सम्बन्धी चौदह विद्याएँ हैं।
अष्टादशस्मृतयः कास्ताः - मन्वत्रिविष्णुहारीतयाज्ञवल्क्यौशनो गिराः । यमापस्तंवसंवर्ताः कात्यायनवृहस्पतिः।। परासरण्यासशंखकथिता दक्षगौतमो। शान्ता तपोविशिष्टश्च धर्मशास्त्र प्रयोजकाः॥
अठारह स्मृतियों के नाम- मनुस्मृति, अत्रिस्मृति, विष्णुस्मृति, हारीतस्मृति, याज्ञवल्क्यस्मृति, उशनःस्मृति, आंगिरसस्मृति, यमस्मृति, आपस्तम्बस्मृति, संवर्तस्मृति, कात्यायनस्मृति, वृहस्पतिस्मृति, पराशरस्मृति, व्यासस्मृति, शंखस्मृति, कथितस्मृति, दक्षस्मृति और गौतम स्मृति।
अष्टादशपुराणनामानि तेषां अन्तर्भेदा लोकतो ज्ञातव्याः - मद्वयं भवयं चैव वत्रयं वाचतुष्टयं । अनापकूस्कलिंगानि पुराणानि विदुर्बुधा।।