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________________ * जिनसहस्रनाम टीका - १८७* मुनिज्येष्ठः- मुनिषु अतिशयेन वृद्धः प्रशस्यो वा ज्येष्ठः मुनिज्येष्ठःमुनियों में प्रभु, अतिशय वृद्ध ज्येष्ठ हैं इसलिए इन्हें मुनिज्येष्ठ कहते हैं। शिवतातिः= शिवस्य निर्वाणस्य तातिः चिन्ता यस्य स शिवताति:, शिवं तनोति वा शिवतातिः तथोक्तं हलायुधनाममालायां - क्षेमकरोरिष्टताति: शिवताति; शिवकर:- शिव की, मोक्ष की, ताति - चिन्ता जिनको है वह शिवताति हैं। शिवप्रदः- शिवं परमकल्याणं प्रददातीति शिवप्रदः- शिव-परमकल्याण उसे भक्तों को जो देते हैं वे शिवप्रद हैं। शांतिदः= शांति कामक्रोधाद्यभावं ददातीति शांतिदः- प्रभु ने कामक्रोधादि के अभाव रूप शांति भव्यों को दी। अतः वे शांतिद हैं। शान्तिकृत शांति क्षुद्रोपद्रयविनाशं करतीति शारिकृत : शुद्रों के द्वारा किये गये उपद्रवों का नाश भगवान करते हैं। अत: वे शान्तिकृत् नाम से युक्त शान्ति:= शाम्यति सर्वकर्मक्षयं करोतीति शान्तिः तिक्त्व तौ च संज्ञायामाशिषि संज्ञायां पुल्लिगे तिक् प्रत्ययः भगवान ने सर्वकर्मों का क्षय किया। ___ कान्तिमान्= कांतिः शोभाऽस्यास्तीति कांतिमान् = कांति - शोभा, अन्तरंग की अनन्तज्ञानादि शोभा, बहिरंग समवसरण रूप शोभा, तथा स्वशरीर की भामण्डलरूप शोभा को प्रभु ने धारण किया। अत: वे कांतिमान हैं। कामितप्रद:= कामितं वाञ्छितं प्रददातीति कामितप्रदः= भगवान कामित वांछित देते हैं। अत: वे कामितप्रद हैं। श्रियांनिधिरधिष्ठानमंप्रतिष्ठः प्रतिष्ठितः। सुस्थिर: स्थविर: स्थास्नुः प्रथीयान्प्रथितः पृथुः॥१३॥ अर्थ : श्रियांनिधि, अधिष्ठान, अप्रतिष्ठ, प्रतिष्ठित, सुस्थिर, स्थविर, स्थास्नु, प्रथीयान्, प्रस्थित, पृथु ये दस नाम आपके सार्थक नाम हैं। टीका - श्रियांनिधिः= श्रियां केवलज्ञानलक्ष्मीणां निधिः स्थानं श्रियानिधिः= भगवान केवलज्ञान निधि के आश्रय स्थान हैं।
SR No.090231
Book TitleJinsahastranamstotram
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorPramila Jain
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size5 MB
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