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________________ * जिनसहननाम टीका - १५९ * धर्मयूपो दयायागो धर्मनेमिर्मुनीश्वरः । धर्मचक्रायुधोदेव: कर्महा धर्मघोषणः ।।५।। अमोघवागमोघाज्ञो निर्ममोऽमोघशासनः । सुरूपः सुभगस्त्यागी समयज्ञः समाहितः ।।६।। अर्थ : धर्मयूप, दयायाग, धर्मनेमि, मुनीश्वर, धर्मचक्रायुध, देव, कर्महा, धर्मघोषण, अमोघवाग, अमोघाज्ञ, निर्मम, अमोघशासन, सुरूप, सुभग, त्यागी, समयज्ञ, समाहित, ये सत्तरह नाम प्रभु के कैसे सार्थक हैं, इसे कहते हैं। टीका - धर्मयूपः = यू मिश्रणे यौतीति यूपः, नीपादयः नीफ्यूपस्तूपकूपतल्पशरव्यवाष्पाः, धर्मस्य दयायाः यूपः यज्ञस्तम्भः धर्मयूपः । यू धातु मिश्रण अर्थ में है, अत; मिश्रण करता है, मिलाता है, उसको यूप कहते हैं। यूप का अर्थ स्तंभ, सहारा है। कूप का सहारा, कूपयूपस्तूप आदि। भगवान् दयामय धर्म के स्तंभ हैं, यूप हैं अतः धर्मयूप हैं। दयायागः = दया सगुणनिर्गुणसर्वप्राणिवर्गाणां करुणा यागः पूजा यस्य स दयायागः सद्गुणी और दुर्गुणी सर्व प्राणियों पर करुणा करना ही जिनकी पूजा है ऐसे प्रभु दयायाग कहे जाते हैं। वा दयापूर्ण यज्ञ करने वाले होने से दयायाग हैं। धर्मनेमिः = णी प्रापणे, नयतीति शकटं नेमिः, नीदलिभ्यां मि' धर्मस्य रथस्य चक्रस्य नेमिः धर्मनेमिः = ___णीम्' धातु प्रापण अर्थ में है अतः जो गाड़ी को ले जाता है उसको नेमि कहते हैं। धर्म रूपी रथ की धुरा होने से भगवन् आप धर्मनेमि हैं।। मुनीश्वरः = मुनीनां प्रत्यक्षज्ञानिनां ईश्वरः मुनीश्वर:- प्रत्यक्षज्ञानी - अवधि, मन:पर्यय और केवलज्ञान धारक मुनिवृंद प्रत्यक्ष ज्ञानी हैं। उनके प्रभु ईश्वर स्वामी हैं। मुनिजनों के स्वामी होने से आप मुनीश्वर हैं। धर्मचक्रायुधः = धर्म एव चक्रं पापारातिखंडकत्वात् धर्मचक्रं धर्मचक्रमायुधं शस्त्रं यस्यासौ धर्मचक्रायुधः- पापरूपी शत्रुओं को खंडित करने वाले धर्मचक्र रूपी आयुध को प्रभु ने धारण किया है अतः वे धर्मचक्रायुध कहलाये। धर्म
SR No.090231
Book TitleJinsahastranamstotram
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorPramila Jain
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size5 MB
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