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________________ * जिनसहस्रनाम टीका - १५५ * बौद्ध उनको बुद्ध नाम से पुकारते हैं। नामपत विद्यान भु को ... काहते. हैं। महेश्वर उनको ईश्वर कहते हैं। इस प्रकार नाभि के पुत्र का एक स्वरूप नहीं है वह अनेक रूप है। नयोत्तुङ्गः = नया: नैगमसंग्रहव्यवहारर्जुसूत्रशब्दसमभिरूद्वैवंभूताः सप्त, अथवा स्यादेक, स्यादनेक, स्यादुभय, स्यादवाच्यं, स्यादेकं वावक्तव्यं, स्यादनेक वावक्तव्यं, स्यादेकानेकं वावक्तव्यं च तैरुत्तुंग: उन्नत: नयोत्तुंग:= आदिनाथ भगवान नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ़ और एवंभूत ऐसे सात नयों से उन्नत हैं। अथवा सातभंगों से श्रेष्ठ हैं। वे सातभंग इस प्रकार हैं : स्यादेक, स्यादनेक, स्यादेकानेक, स्यादवाच्य, स्यादेक अवाच्य, स्यादनेक अवाच्य, स्यादेकानेक अवक्तव्य ऐसे सात भंगों से आदिप्रभु श्रेष्ठ हैं। वे सर्वथा एक नहीं हैं परन्तु कथंचित् एक हैं, वे जीवद्रव्य की अपेक्षा एक हैं। परन्तु केवलज्ञान, केवलदर्शन, आदिगुणों की अपेक्षा अनेक हैं। द्रव्य तथा गुणों की क्रमापेक्षा कथंचित् एकानेक हैं। द्रव्य और गुणों की अपेक्षा युगपत् होने से प्रभु स्यादवाच्य हैं। इस कथंचित् अवाच्य में एक की मुख्यता अन्तर्हित है। अत: पाँचवाँ भंग हुआ। तथा इसी भंग में अनेक की मुख्यता भी अन्तर्हित हैं। अत: छठा भंग स्यादनेक अवक्तव्य भंग है और इसी स्यादवाच्य भंग में क्रम से एकत्वअनेकत्व भी अन्तर्हित हैं। अतः इन सात नयों से प्रभु उन्नत हैं। नैकात्मा = न एक: आत्मा यस्येति नैकात्मा, ‘असरीरा जीवघणा' इति वचनात् = मुक्त हुए जिनेश्वर में अनेक मुक्तात्माओं का समावेश हुआ है। तो भी जिनेश्वर के ज्ञानादि गुण जिनेश्वर के ही हैं। क्योंकि वे गुण उनसे अभिन्न हैं तथा जिस सिद्धक्षेत्र के असंख्यात प्रदेशों में आदिप्रभु के असंख्यात आत्मप्रदेश विराजमान हैं, उतने में ही अनन्त मुक्तात्माओं के आत्मप्रदेश भी विराजमान हैं। अत: अन्य मुक्तात्माओं की अपेक्षा जिनेश्वर में नैकात्मत्व है। परन्तु स्वद्रव्यादि अपेक्षा से जिनेश आदिनाथ में नैकात्मत्व नहीं है। नैकधर्मकृत् = न एकं धर्म कृतवान् नैकधर्मकृत् यतिश्रावकधर्मभेदादिति- आदि भगवंत ने अपनी दिव्यध्वनि से यतिधर्म तथा गृहस्थधर्म तथा उनमें अनेक भेदों का विवेचन किया है। अतः वे नैकधर्मकृत् हैं।
SR No.090231
Book TitleJinsahastranamstotram
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorPramila Jain
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size5 MB
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