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________________ * जिनसहस्रनाम टीका- १५४ * होकर विशाल राज्य का त्याग किया और मोह का नाश करने में अपना अपूर्व धैर्य प्रकट किया। अतः वे उदारधी हैं। लोकालोकव्यापी ज्ञानयुक्त होने से उदार धी हैं। = करने में मनीषी मनीषा बुद्धिर्विद्यतेऽस्य स मनीषी। जीवादिक पदार्थों का विचार प्रभु की बुद्धि बहुत ही चतुर है । अतः वे मनीषी हैं। वा मननशक्ति युक्त होने से मनीषी हैं। धिषण: = धिषणास्यास्ति इति धिषणः । त्रिधृषा प्रागल्भे इति धृष्णोतात धिषण:- 'धृषेधिषश्च' = = अर्थ 'धृषा' अति बोलना या चातुर्य अर्थ में आता है। 'धृ' को धि आदेश होता है अतः धिषण शब्द बनता है, चतुरतापूर्ण बुद्धियुक्त होने से धिषण हैं। धारण शक्ति से सम्पन्न होने से भी आप धिषण हैं। धीमान् = धीरस्ति अस्य धीमान् = गणधरादि में प्रभु की बुद्धि श्रेष्ठ है। वा 'धी' केवलज्ञान के धारक होने से धीमान् कहलाते हैं। शेमुषीशः = शे अव्यय शेमो हस्तं मुष्णाति शेमुषी मेधा तस्याः ईश: स्वामी शेमुषश:- शेमुषी बुद्धि है, बुद्धि के स्वामी होने से आप शेमुषीश कहलाते हैं । 'शे' अव्यय है, मुष् धातु चुराने या ग्रहण करने के अर्थ में हैं, वह शेमुषीश है और तत्त्वज्ञान को ग्रहण करने वालों में जो स्वामी हैं वे शेमुषीश कहलाते हैं। - गिरांपतिः = गिरां वाणीनां पतिः गिरांपतिः 'क्वचिन्न लुप्यते' इति विधानात् = प्रभु सब वचनों के स्वामी हैं। उनके ज्ञान वा वचन में कोई वस्तु छिपी हुई नहीं है । वा १८ महाभाषा और सात सौ लघु भाषा के स्वामी होने से आप गिरांपति हैं । नैकरूपः = न एकं रूपं आकारो यस्य नैकरूप; जैनास्तु जिनं कथयन्ति बौद्धास्तु बुद्धं प्रतिपादयन्ति, भागवतास्तु नारायणं कथयन्ति, महेश्वरास्तु ईश्वरं निरूपयंति इति अनेन नाभिसूनुर्नैक स्वरूप इत्यर्थः = नहीं है एक रूप जिसका अतः प्रभु अनेक रूप के धारक हैं। जैसे जैन वृषभनाथ को जिन कहते हैं। -
SR No.090231
Book TitleJinsahastranamstotram
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorPramila Jain
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size5 MB
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