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________________ * जिनसहस्रनाम टीका - १४४ * टीका - क्षेमी = क्षेमो मोक्षोऽस्यास्तीति क्षेमी = क्षेम याने मोक्ष वह प्रभु को प्राप्त हो गया है अतः वे क्षेमी हैं। क्षेमंकरः = क्षेमं करोतीति क्षेमकरः, क्षेम प्रिय महेन्द्रेष्वणवः ख प्रत्ययः ह्रस्वारुषोर्मोन्त:' = भक्तों का कल्याण करने वाले प्रभु क्षेमकर हैं। अक्षय्यः = न क्षयितुं शक्यः अक्षय्य:- जिनका कोई भी क्षय नहीं कर सकता ऐसे प्रभु अक्षय्य हैं। क्षेमधर्मपतिः = क्षेमधर्म: तस्य पति: स्वामी क्षेमधर्मपतिः = जिससे जगत् का कल्याण होता है ऐसे निर्मल धर्म के प्रभु स्वामी पति हैं अतः उन्हें क्षेमधर्म के पति कहना योग्य ही है। क्षमी; = क्षमोऽस्यास्तीति क्षमी समर्थ इत्यर्थः तथानेकार्थे - 'क्षमः शक्ते हिते युक्ते क्षमावति' = प्रभु सामर्थ्ययुक्त होने से क्षमी हैं अथवा क्षमायुक्त होने से क्षमी हैं। अग्राह्यः = ग्राह्यते स्म ग्राह्यः परदारलम्पटेः। कुल जाति विज्ञान गर्वावरुद्धर्मद्यमांसमध्वास्वादकैर्न ग्राह्यः स अग्राह्यः, नोपादेयो न गम्य इत्यर्थः= जो परस्त्रीलम्पट हैं, कुल, जाति, ज्ञान आदि का गर्व धारण करते हैं, मद्य, मांस, मधु का आस्वादन करते हैं ऐसे लोगों को जो ग्राह्य नहीं हैं ऐसे जिनदेव का नाम अग्राह्य है। ज्ञाननिग्राहाः = ज्ञानेन केवलज्ञानेन निश्चयेन ग्राह्यः उपादेयः गम्य; सः ज्ञाननिग्राह्यः ज्ञानगम्य इत्यर्थः= जिनदेव केवलज्ञान से निश्चयपूर्वक ग्रहण करने योग्य हैं, जानने योग्य हैं। जिनदेव का स्वरूप जब हम केवलज्ञानी होंगे तब हमसे यथार्थ जाना जायेगा। . ध्यानगम्यः = उत्तमसंहननस्यैकाग्रचिंतानिरोधो ध्यानमंतर्मुहूर्त्तादिति वचनात्, ध्यानेन ध्यानं चिंतानिरोधस्तेन गम्य: प्राप्यः स: ध्यानगम्य: अन्तर्मुहूर्त तक उत्तम संहनन वाले का एक अन (मुख्य आत्मा) में चित्त (मन) मन का निरोध होता है। मन एक आत्मतत्त्व में लीन होता है उसको ध्यान कहते हैं, उस ध्यान के द्वारा गम्य होने से आप ध्यानगम्य हैं।
SR No.090231
Book TitleJinsahastranamstotram
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorPramila Jain
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size5 MB
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