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* जिनसहस्रनाम टीका - ११८ * जिनेन्द्र को उत्पन्न किया है ऐसे प्रभु हैं। समस्त जीवों के साथ उच्च मित्रता का भाव धारण करने से आप महामैत्रीमय हैं।
___अमेयः = मा माने मीयते मेय; आत्खनोरिच्च', न मेय: अमेयः न केनापि मातुं शक्यते इत्यर्थः = जिसके द्वारा न माने मीयते अर्थात् जिसको नापा नहीं जाता अर्थात् प्रभु अनन्त गुणधारक हैं अतः अमेय हैं।
महोपायः = महान् सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रतपोलक्षण उपायो मोक्षस्य स महोपायः = महान् सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक् चारित्र तथा तपरूप लक्षण मोक्ष का उपाय है ऐसे वे प्रभु मोक्ष के उपायरूप हैं।
महोमयः = मह उत्सवस्तस्य बन्धुः सोमो वा महोमयः अथवा महसा ज्ञानेन निवृत्ती महोमयः उत्कृष्टबोध इत्यर्थः = मह- उत्सव उसका जो बंधु उसे महोमय कहते हैं। अथवा महसा-ज्ञान से जो निर्वृत्त बना हुआ है, जो ज्ञान के द्वारा मय-मानों निवृत्त हुए हैं ऐसे प्रभु महोमय हैं।
महाकारुणिको मन्ता महामन्त्री महायतिः। महानादो महाघोषो महेज्यो महसांपतिः ॥३॥
अर्थ = महाकारुणिक, मन्ता, महामन्त्र, महायति, महानाद, महाघोष, महेज्य, महसांपति ये आठ नाम जिनदेव के हैं।
टीका - महाकारुणिकः = करुणायां सर्वजीवदयायां नियुक्तः, कारुणिक: महांश्चासौ कारुणिकः महाकारुणिकः सर्वजीवमरणनिषेधकः इत्यर्थः = प्रभु सर्व जीवों पर करुणा भाव रखते हैं, अत; वे महाकारुणिक हैं। अर्थात् संपूर्ण जीवों का रक्षण करो ‘मा हिंस्यात्-सर्वभूतानि' किसी भी प्राणी का घात मत करो, ऐसा उपदेश देकर प्राणिमारण का निषेध करते हैं इसलिए वे महादयालु
है।
मन्ताः = मनु बोधने मनुते जानातीति मन्ता ज्ञातेत्यर्थः = संपूर्ण जीवादि पदार्थों को भगवान् ‘मनुते जानातीति मन्ता' जानते हैं, अत: वे मन्ता हैं।
महामंत्रः = महान् मंत्री गुप्तवादो यस्येति स महामंत्रः । उक्तमनेकार्थे - 'मंत्रो देवादिसाधने वेदांशे गुप्तवादे च' = देवादि साधन में, वेदांश में और