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________________ * जिनसहस्रनाम टीका - ११५. महाध्यानी = ध्यानं धर्मशुक्ल-ध्यानद्वयं विद्यते यस्य स ध्यानी महांश्चासौ ध्यानी महाध्यानी = धर्मध्यान और शुक्लध्यान ये ध्यानद्वय जिनके हैं वे जिनराज महाध्यानी कहे गये हैं। आर्त्तध्यान से तिर्यग्गति, रौद्रध्यान से नरकगति, धर्म्यध्यान से स्वर्गगति तथा शुक्ल ध्यान से चरमशरीरधारियों को मुक्ति प्राप्त होती है। जितने तीर्थंकर पद धारक होते हैं वे शुक्लध्यान से मोक्ष को प्राप्त होते हैं और वही महाध्यान है, वह ध्यान आपके होता है इसलिए आप महाध्यानी हैं। महामौनी = मुनिषु ज्ञानिषु भवं मौनं विद्यते यस्येति मौनी । महाश्चासौ मौनी महामौनी वर्षसहस्रपर्यंत खल्वादिनाथो न धर्ममुपदिदेश। ईदृशः स्वामी महामौनी भण्यते = मुनियों का, ज्ञानियों का जो वचन न बोलकर आत्मचिंतन में लीन होना, उसे मौन कहते हैं, ऐसा मौन जिन्होंने धारण किया उन्हें मौनी कहते हैं। भगवान आदिप्रभु ने हजार वर्षांतक मौन धारण किया था। उन्होंने इतने वर्षों तक उपदेश नहीं दिया, इसलिए वे महामौनी हैं। महादम: - महान् दमः तपः क्लेशसहिष्णुता यस्य स महादमः, अथवा महान् सर्व-प्राणिगण रक्षालक्षणो दो दानं यस्य स महादमः, महादे महादाने मा लक्ष्मीर्यस्य स महादमः। तथा चोक्त, विश्वशंभुमुनिप्रणीतायामेकाक्षरनाममालायाम् दो दाने पूजने क्षीणे दानशौंडे च पालके । देवे दीप्ती दुराधर्षे दो भुजे दीर्घदेशके। दयायां दमने दीने दंशकेऽपि दमः स्मृतः ।। वधे च बंधने बोधे बाले बीजे बलोदिते। विदोषेपि पुमानेष चालने चीवरे वरे ।। महान् दम:-तपः = क्लेश सहन करने का जो महा-सामर्थ्य उसे महादम कहते हैं। अथवा सर्व प्राणियों का रक्षण करने रूप जो दान-वह अभयदान वह है महादम। अथवा लक्ष्मी महालक्ष्मी केवलज्ञान जिसके होने से महादम
SR No.090231
Book TitleJinsahastranamstotram
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorPramila Jain
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size5 MB
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