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________________ * जिनसहस्रनाम टीका- ११३ महादानः = महद्दानं रक्षणं विश्राणनं यस्येति महादानः । उक्तं च, दानं मतं गजमदे रक्षणच्छेदशुद्धिषु विश्राणनेऽपि सर्व प्राणियों को प्रभु से अनन्त अभयदान प्राप्त होता है अतः वे महादान हैं। = महाज्ञान: = महत् ज्ञानं केवलज्ञानं यस्येति महाज्ञानः = महान् है अर्थात् प्रभु केवलज्ञान सम्पन्न हैं । महायोगः = महान् योगश्चेतो निरोधो यस्य स महायोगः चित्तनिरोध महान् होता है। अतः वे महायोग हैं। = प्रभु का ज्ञान महामहपतिः प्राप्तमहाकल्याणपंचकः । महाप्रभुर्महाप्रातिहार्याधीशो महेश्वरः ॥ १२ ॥ महागुण: = महान् गुणः संधिविग्रहयानासनद्वैधीभावसंश्रयाख्यो यस्येति ये महागुण: संधि, विग्रह, यान, आसन, द्वैधीभाव तथा संश्रय, महागुण राज्यावस्था में प्रभु ने अपने पुत्र को बतलाये थे इस अपेक्षा से प्रभु महागुण थे और दीक्षा लेने पर प्रभु ने मुनि के मूलगुण तथा उत्तरगुणों का निरतिचार पालन किया था अतः वे महागुण थे । = प्रभु का " अर्थ : महामहपति, प्राप्तमहाकल्याणपंचक, महाप्रभु, महाप्रातिहार्याधीश, महेश्वर ये नाम प्रभु के कहे गये हैं। टीका = महामहपतिः = महामहस्य मेरुस्नानस्य पतिः स्वामी महामहपतिः, मेरु पर जिनेश्वर का १००८ कलशजल से महाभिषेक कर इन्द्र ने प्रभु की महापूजा की थी, उस पूजा के स्वामी महामहपति हैं। प्राप्तमहाकल्याणपंचक: = महाकल्याणानां गर्भावतार जन्माभिषेक - निष्क्रमण- ज्ञान - निर्वाणानां पंचकं महाकल्याणपंचकं प्राप्तं महाकल्याणपंचक येनासौ प्राप्तकल्याणपंचक: - गर्भावतार जन्माभिषेक, दीक्षा, केवलज्ञान तथा निर्वाण इन पाँच महाकल्याणकों को प्राप्त होने से प्रभु प्राप्त महाकल्याण पंचक इस अन्वर्थ नाम को धारण करते हैं। महाप्रभु : = महांश्चासौ प्रभुः स्वामी स महाप्रभुः - चक्रवर्ती, गणधरादि, प्रभुओं की अपेक्षा से भी भगवन्त का प्रभुत्व बड़ा है, अतः प्रभु महाप्रभु हैं।
SR No.090231
Book TitleJinsahastranamstotram
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorPramila Jain
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size5 MB
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