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________________ * जिनसहस्रनाम टीका - १०५ * यहाँ पार कहते हैं और जो संसार रूपी समुद्र से पार हो गये वे पारग हो गये। अतः ‘पारग' कहलाते हैं। भवतारकः = भवस्य पंचधा संसारस्य तारक; पारं प्रापकः स भवतारक: = द्रव्य संसार, क्षेत्र संसार, काल संसार, भाव और भव संसार ऐसे पाँच प्रकार के संसार से जीवों को हारने वाले अर्थात् प्रसार से पार करने वाले लिनेश्वर भवतारक हैं। अगाह्यः = गाह् विलोडने गाह्यते विलोड्यते इति गाह्यः न गाहाः अगाह्यः भगवतः पारं गन्तुं न शक्यते इत्यर्थः - भगवान के गुणों का एवं स्वरूप का अवगाहन हम लोगों से अशक्य होने से वे अगाह्य हैं। ‘गाह्' धातु विलोड़न अर्थ में आता है आप किसी के भी द्वारा अवगाहन करने योग्य नहीं हैं अर्थात् आपके गुणों को कोई जान नहीं सकता, अत: आप अगाह्य हैं। गहनं = गाह्यते योगिभि: गहनं अलक्ष्यः अलक्ष्यस्वरूप: इत्यर्थः = योगियों ने जिनके स्वरूप के रहस्य को जाना है अत: उन्हें गहन कहते हैं। आपका स्वरूप अतिशय गंभीर है, कठिन है अत: आप गहन हैं। गुहां = गुह् संवरणे गुह्यते इति गुह्यं योगिनां रहस्यमित्यर्थ : - योगियों के लिए जिनका स्वरूप रहस्यपूर्ण है, ऐसे जिनेश्वर को गुह्य कहते हैं। 'गु' धातु संवरण अर्थ में आता है, आप इन्द्रियों के अगोचर हैं गुप्त हैं अतः आप 'गुह्य' हैं। परार्घ्यः = परमं उत्कृष्टं ऋद्धं समृद्धं परार्द्धं परार्दुभवः परार्ध्यः प्रधानः इत्यर्थः - परम, उत्कृष्ट, ऋद्ध, समृद्ध, अतिशय तथा ऐश्वर्यशाली पद को धारण करने वाले जिनेश्वर होते हैं इसलिए उनका पराय॑ नाम अन्वर्थक है। वा आप सर्वोत्कृष्ट हैं अतः परार्घ्य हैं। परमेश्वरः = परमश्चासावीश्वर: परमेश्वर: अथवा परा उत्कृष्टा मा लक्ष्मीः, परमा मोक्षलक्षणोपलक्षिता लक्ष्मीः परमा, परमाया: परमलक्ष्म्या: ईश्वरः स्वामी परमेश्वरः = जिनदेव सबसे श्रेष्ठ होने से परमेश्वर हैं । अथवा परा उत्कृष्ट जो मा-मोक्षलक्ष्मी उसके जिनदेव ईश्वर हैं, इसलिए वे परमेश्वर हैं। वा अति अधिक सामर्थ्य युक्त होने से भी आप परमेश्वर हैं।
SR No.090231
Book TitleJinsahastranamstotram
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorPramila Jain
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size5 MB
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