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* १२ * हे जिनेन्द्र ! अचिन्त्य महिमापूर्ण आपके स्तोत्र की तो बात दूसरी है, आपका नाम जीवों की संसार से रक्षा करता है। ग्रीष्मकाल में सूर्य के महान् सन्ताप से पीड़ित पथिकों को कमलयुक्त सरोवर ही नहीं, उसके समीप की सरस पवन भी आनन्द प्रदान करती है। सहस्रनाम स्तोत्र की विशेषता :
महाकवि जिनसेन ने भगवान ऋषभदेव के परिपूर्ण जीवन पर दृष्टि डालकर जो अष्टाधिक सहन नामों की रलमालिका बनाई है, उसे कण्ठभूषण बनाने वाला व्यक्ति विश्वसेन का प्रकाश पाता है। उसे भगवान वृषभसेन दिखते हैं तो वे ही पुरुदेव तथा आदिनाथ भी प्रतीत होते हैं।
योगीन्द्र पूज्यपाद ने भगवान को शिव, जिन, बुद्ध आदि नामों द्वारा स्मरण किया है -
जयन्ति यस्याऽवदतोऽपि भारती
विभूतयस्तीर्थ-कृतोऽप्यनीहितुः। शिवाय धाने सुगताय विष्णावे,
जिनाय तस्मै सकलात्मने नमः ॥२ ।। तालु, ओष्ठादि का अवलंबन न लेकर बोलते हुए तथा इच्छा-विमुक्त जिन तीर्थंकर की वाणी तथा प्रभामंडलादि विभूतियों जयवंत होती हैं, उन शिव (कल्याण), धाता (ब्रह्मा), सुगत (बुद्ध) विष्णु (केवलज्ञान के द्वारा सर्वत्र व्याप्त होने वाले) जिन सकलात्मा (शरीर सहित जीवनमुक्त अरहंत भगवान) परमात्मा को नमस्कार है।
विविध धर्मों में भी पूज्य शब्दों द्वारा स्मरण किये जाने वाले नामों का संकलन कर भगवज्जिनसेन ने धार्मिक मैत्री के लिए प्रकाशस्तंभ का निर्माण किया है, जिससे भिन्न-भिन्न धर्मों में समन्वय और प्रेम की भावना तथा भाईचारे की दृष्टि वृद्धिंगत हो। इस नाम-स्तोत्र में आगत ये नाम ध्यान देने योग्य हैं। भगवान को मृत्युंजय कहा है, कारण उन्होंने मृत्यु पर विजय प्राप्त की थी। इसी प्रकार अन्य नाम हैं जिनका अर्थ अनवाद में दिया गया है। सहस्रनाम के प्रारंभ में जो स्तवन है उसमें ये शब्द ध्यान देने योग्य हैं- मृत्युंजय (पद्य ५), त्रिपुरारि (६) त्रिनेत्र (७) अर्धनारीश्वर (८) शिव हर शंकर (९) परम विज्ञान (२८)।
सहस्रनाम में दस अध्याय हैं। प्रथम अध्याय में विश्वात्मा (२), विश्वतश्चक्षु (३) विश्वतोमुख (४) विष्णु (६) ब्रह्मा (७) बुद्ध (१०) परमात्मा परंज्योति (१२) ।