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________________ * जिनसहस्रनाम टीका - ९३ * कवि: पुराणपुरुषो वर्षीयानृषभः पुरुः। प्रतिष्ठाप्रभवो हेतुर्भुवनैकपितामहः ।।११॥ अर्थ : कवि, पुराणपुरुष, वर्षीयान्, ऋषभ, पुरु, प्रतिष्ठाप्रभव, हेतु, भुवनैकपितामह ये आठ नाम जिनराज के हैं। कविः = टु क्षु रु ल शब्ये कोहि धार्ग निर याविः। ; सर्वधातुभ्य: - धर्माधर्म का स्वरूप कहने वाले प्रभु कवि कहे जाते हैं। टु, क्षु, रु. कु शब्द बोलने अर्थ में हैं। कोति - कथयति, धर्म-अधर्म निरूपण करता है, अत: कवि है। वा द्वादशांग का कथन करने वाले होने से भी कवि हैं। पुराणपुरुषः = पुराणश्चिरन्तनः पुरुषः आत्मा यस्येति स पुराणपुरुषः = अत्यन्त प्राचीन चिरन्तन है पुरुष आत्मा जिनका ऐसे प्रभु को पुराणपुरुष कहते हैं। अथवा अनादिकालीन होने से भी पुराणपुरुष हैं। वर्षीयान् = अतिशयेन वृद्धः वर्षीयान् ‘प्रियस्थिरस्फिरोरुगुरुबहुल तृष्ण दीर्घ ह्रस्व वृद्ध वृंदारकाणां प्रस्थ स्फुवरगरवंत्र-पद्राघहस्व स वर्षवृंदा: तद्वदिष्टेमेयस्सु बहुलं = अतिशय वृद्ध अत्यन्त प्राचीन क्योंकि भगवान आदिनाथ तीसरे काल के अन्त में ही मुक्त हो गये थे, उनके मुक्त होने के साढ़े तीन वर्षों के अनंतर चतुर्थ काल का प्रारम्भ हुआ। वह एक कोड़ाकोड़ि सागर वर्षों का है, वह भी बीत गया और पंचमकाल का प्रारम्भ होकर भी आज २५०० वर्ष हुए हैं। अत: आप वर्षीयान् हैं। अथवा आप ज्ञानादि गुणों की अपेक्षा अतिशय वृद्ध हैं अतः वर्षीयान् हैं। ऋषभः = ऋषि रषी गतौ ऋषति जगज्जानाति इति ऋषभः 'ऋषिवृषिभ्यां यणवत्' = ऋष् धातु का अर्थ जानना होता है। अर्थात् भगवान् जगत् को जानते हैं। सबमें श्रेष्ठ हैं अतः ऋषभ हैं। पुरुः = पृ पालनपूरणयोः पृणाति पालयतीति पुरु: महामित्यर्थः 'इषिवृषि भिदिगृधिभृदिपृभ्यः कु:' = जो जगत् का पालन करते हैं वे पुरु हैं। जगत् को हितकर धर्म का उपदेश देकर उसका पालन किया है, अतएव वे पुरुष हैं
SR No.090231
Book TitleJinsahastranamstotram
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorPramila Jain
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size5 MB
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