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________________ * जिनसहस्रनाम टीका - ९१ * विहतान्तकः = विहतो विध्वस्तो अंतको यमो येन स विहतान्तकः = प्रभु ने यम का विध्वंस किया है, अतः वे विहतान्तक हुए। जन्म, जरा, मरण से मुक्त हुए हैं। पिता = पाति रक्षति दुर्गतौ पतितुं न ददाति स पिता, स्वस्रादयः स्वसृनप्तृ नेष्टुत्वष्ट्र क्षत्तृ होतृ पोतृ प्रशास्तृ पितृ मातृ दुहितृ- जामातृभ्रातरः एते तृन् प्रत्ययान्ता निपात्यन्ते = जो रक्षा करता है, दुर्गतियों में पड़ने नहीं देता है वह पिता कहलाता है। स्वसृ नृप्त नेष्ट, त्वष्ट्र, क्षघु, होत. पोत, प्रशास्तृ, मातृदुहितृ, जामातृ मातृ इनके त्र का लोप होता है। जीवों की नरक आदि कुगतियों से रक्षा करते हैं अत: आप पिता कहलाते हैं। पितामहः = पितामहः पितुः पिता पितामहः पित्रोर्डामहट् - वे पिता के भी पिता हैं। सर्व जगत् के गुरु हैं अत: पितामह कहलाते हैं। पाता = पाति रक्षति दुःखादिति पाता रक्षक इत्यर्थ:- दुखों से भगवान जीवों का रक्षण करते हैं अतः वे पाता हैं। पवित्रः = पुनातीति पवित्रः, 'ऋषिदेवतयो; कर्तृरि इअन्': - भक्तों को पवित्र करने वाले जिनदेव पवित्र हैं। अथवा स्वयं परम शुद्ध हैं अत: पवित्र पावनः = पवयति जगत्पवित्रं करोतीति पावनः - जगत् को पवित्र करते हैं, अतः आप पावन हैं। गतिः = गमनं ज्ञानमात्रं गतिः सर्वेषामतिमथनसमर्थो वा गतिः - आविष्टलिंगं गतिः शरणं - जिनदेव गति हैं, ज्ञानस्वरूप हैं। अथवा दुखविनाश करने में समर्थ हैं। या सारे भन्य जीव तपस्या करके आपके अनुरूप होना चाहते हैं अतः आप सबकी गति हैं। अथवा इसकी संधि आगति भी है, आपसिद्धावस्थासे पुनः संसार में आगमन नहीं है अतः अगति हैं। बाता = त्रायते रक्षतीति त्राता - भक्तों का रक्षण करते हैं अत: आप त्राता हैं। भिषग्वरः = भिषजा वैद्यानां मध्ये वरः प्रधान श्रेष्ठः स भिषग्वरः।
SR No.090231
Book TitleJinsahastranamstotram
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorPramila Jain
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size5 MB
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