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तरकालोचित यानेन वयस्यः सहितो मुवा । प्रवृत्तः प्रेम संभार: भारितो बल्लमा मभ ॥१३ ।।
कमल नयनी सैंकड़ों पुरस्त्रियाँ धूम-धाम से अपने-अपने कार्य में संलग्न थी । दीन अनाथों को मनोवाञ्छित दान देकर उन्हें कृतकृत्य किया गया। चारों और मधुर वातावरण छा गया। उसी समय कुमार विवाह योग्य पालकी में सवार अपने समवयस्कों के साथ प्रानन्द से प्रेम संभार से भरा प्रिया मिलन की आश में डूब गया ॥ ६२-६३॥
या क्रम कृता शेषं विवाह विधि मङ्गला। सत्रासौ बीक्षिता तेन पताकेव मनोभुवः ॥ १४ ॥
यथाक्रम से गृहस्थ धर्मानुसार समस्त विवाह-पाणिग्रहण संस्कारादि क्रियाएं समाप्त हुयीं, उसी समय कुमार ने उस साक्षात् कामदेव स्वरूप कमनीय काम्ता का अवलोकन किया। वस्तुतः वह साक्षात् कामदेव की पताका ही थी ।। ६४ ॥
तदर्शनाम्भसासिक्त स्तथास्य प्रेम पादपः । ववृधे शत शाखा स यथा मान्न मनो बनौ ।। ६५ ॥
उसी समय उसे लगा मानों इस सुन्दरी के दर्शन रूपी जल से उसका प्रेम रूपी पादप-वृक्ष अभिसिंचित हो गया । उसके मन रूप क्षेत्र में सैंकडों मनोरथ रूपी शाखाओं से बढ़ गया जिस प्रकार वन में वट वृक्ष वृद्धिंगत होता है ।। ६५ ।।
चित्त भूरिति मिष्यासि दा रेषा सवास्मरे । यत्तदा लोकनासस्य सर्वाङ्गभ्यः समुदययों ।। ६६ ॥
उसको चित्त भूमि में यह दृढ़ हो गई, कामदेव अचल हो गया और उसने भूमिपने को मिथ्या कर दिया क्योंकि भूमि कोमल होती है पर इसके मन में यह कठोर हो गई जिस समय उसके सर्व अङ्गों का निरीक्षण किया इसका सर्वाङ्ग स्मर पीड़ा से पार हो गया ।। ६६ ।।
यतो यतस्तदंगेषु वक्षः क्षिप्तं समुत्सुकम् । ततस्ततः समाकृष्टं चापेनापि मनोभुवः ॥ ७ ॥ वयों कि कुमारी के जिस-जिस अङ्ग पर इसको दृष्टि जाती वहीं
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