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तेनामाणि महाभाग चम्पायर्या विमलात्मनः । श्रेष्ठिनो विमला स्येयं विमलादि मतिः सुता ।। ७३ ॥
प्रश्नानुसार उस चित्रकार ने सरल, स्पष्ट, यथार्थ परिचय देते हुए कहा, महाभाग ! यह चम्पानगरी के धर्मात्मा-पुण्यात्मा; निमंलात्मा श्रेष्ठी की सेठानी विमला से उत्पन्न "विमलामती' नाम की कन्या है। पुत्री है ।। ७३ ।।
वेणी बलय विसृस्ता पुष्प भ्राम्यन् मधुवृता। कपोल फलकोदभुत स्वेद बिन्तु चितानना ।। ७४ ॥
इसकी नागिन सी वेणी विस्तृत पुष्पमालाओं से गूंपी गई है जिस पर मधुकर समूह मंडरा रहे हैं । कपोलों पर ढलकते स्वेद विन्दु अद्भुत रूप से अंकित हैं । इससे प्रानन-मुख अत्यन्त शोभायमान है ।। ७४ ।।
चेलाञ्चल तथा चार हारावलिम सौ शनैः । संयम्य सर्वतो बद्ध लक्षा मण्डल बारिणी ॥ ७५ ।।
इसके वस्त्र का अंचल चंचल हो रहा है । सुन्दर हार घारण की है, शनैः शन: चारों ओर से अपने को संयमित कर अपने निर्दिष्ट कार्य की प्रोर सखियों सहित गमन करती हुयी चित्रित हुयी है ।। ७५ ॥
कन्यका कमनीयोगी कीडन्ति कन्टुकेन सा। समें सखोभि रालोकि विस्मितेन मया चिरम् ॥ ७६ ।।
यह अत्यन्त कमनीय कन्या मेंद से अपनी सखियों के साथ खेल रही थी। उस समय मैंने बड़े आश्चर्य से उसे चिर काल तक निहारा ।। ७६ ।।
प्रागत्येवं ततः साधो मत्वात्यन्तं मनोहरम । अत्र तप माकल्पि शतांशादिय किचन ।। ७७ ।।
सत्पश्चात् यहाँ प्राकर, हे साधो ! यह मित्र मैंने अङ्कित किया है वस्तुतः यह तो उसका पातांशवां भाग भी नहीं है । उसका पयाय लावण्य अनुपम है ।। ७७ ॥
ततो वितीयं हृष्टात्मा सा तस्मै पारितोषिकम् । जिनवस प्रतिच्छन्द लेखयामास तत् पटे ।। ७८ ।।