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विमुखं तं ततो ज्ञात्वा तस्मिन् बार परिग्रहे ।
स बन्धुविधेय तं सूनो रंजयितुं मनः ॥ ६ ॥
यौवन वृद्धि के निविकार कुमार को देखकर पारिवारिक जन उसका मन रंजायमान करने की सोचने लगे। वे सोचने लगे यह स्त्री परिग्रह किस प्रकार स्वीकार करे, इसके लिए कोई उपाय सोचना चाहिए । विवाह करने की ओर इसका तनिक भी भाव नहीं है । श्रतः सभीजन उसे विवाह की ओर भाकर्षित करने का प्रयत्न करने मे ॥ ६ ॥
यत्र चित्र रत कौडा रसिकानि विलासिनाम् । मिथुनानि निशीदन्ति तेषूद्यानेषु नीयते ॥ ७॥
जिन उद्यानों में मिथुन स्त्री-पुरुष क्रीडा करते थे, बैठते थे, ग्रामोदप्रमोद करते उन उद्यानों में उसे ले जाया गया || ७ ||
क्रीडत् कान्ता स्तनाभोगसङ्ग संक्रान्त कु कुमाः । वापी: पद्मानना स्तस्य दर्शयन्ति जना निजाः ॥ ८ ॥
उन उद्यानों में कीडा-संभोगादि करने वाली नारियों के स्नान करने से वापिकाओं का जल कुंकुम से अरुरण हो गया था, स्तनाभोग से संक्रान्त भाराकान्त पद्ममुखी वराङ्गनाओं से व्याप्त वापिकाओं पर ले जाकर कुमार को दिखाया गया ॥ ८ ॥
दर्शनावेय याश्चित्तं मोहयन्ति यतेरपि । स्नानादि विषये तस्य नियुक्ता स्तामृगीदृशः ॥
पण्याङ्गना जना पत्र प्राययन्ति मुखेन्दुभिः । चेतांसि पश्यतामाशु चन्द्रकान्त मरिरिव ॥ १० ॥
ये वापिका देखने मात्र से यतियों के मन को भी आकर्षित करु लेती हैं। वहाँ मृगनयनी स्नानादि विधि इसी प्रकार से करती हैं। उन स्थलों पर ले जाकर उसको रमण कराती हैं । जहाँ श्रंगार रस भरी वेश्याएँ अपने मुख चन्द्रों से भोगियों के मन को द्रवित कर देती हैं । शीघ्र चन्द्रकान्त मरिण के समान पुरुषों का मन साद्र-द्रवित हो जाता है उन्हें देखते ही । धर्थात् मुखचन्द्र समान वेश्याएं जहां विलास कर रही हैं यहाँ पुरुषों का मन चन्द्रकान्त मरिण के समान सजल प्रेमरस पूरित हो
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