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भाषी हैं मधुरालापी, सदाचारी, सरल और मन्दकषायी है । कामदेव को भी तृप्त करने वाले ये जन विष्णु के समान भोगानुभव करते हैं । अर्थात् धर्म पुरुषार्थ पूर्वक काम पुरुषार्थ का सेवन करते हैं ।। २० 11
यन्नारी नयनापाङ्ग रङ्गनों बल्लता । वासो निः संशयं चके शान्तानामपि मानसे ।।२१।।
प्रमदा जन की रूपराशि-कान्ति अद्वितीय है । इन के नयन कटाक्ष कामदेव को भी उन्मत्त करने वाले हैं। साधारण जन की क्या बात शान्तरित्त साधुजन के मन को भी चञ्चल करने में समर्थ हैं । अर्थात् स्वभाव से काम विजयी जनों के मन में भी प्रवेश कर उन्हें विचलित करने में समर्थ हैं। अभिप्राय यह है कि यहाँ की रणियाँ रति मोर तिलोत्तमा प्रादि को भी तिरस्कृत करने में समर्थ हैं । रागियों की क्या बात त्यागियों का भी धैर्य शिथिल करने में समर्थ है ।। २१ ॥
चित्र विचित्र महाsपि जिन सन परंपरा। मानोन्नतानिहन्त्याशु यस्मिन् पापानिपश्यतां ॥२२॥
इस नगरी के जिनालयों की छटा अनूठी ही है । चित्र-विचित्र कलाओं से अनेकों कूट-शिखर बनाये गये हैं। विशाल और उन्नत जिनालयों के दर्शन करने से ऐसा प्रतीत होता है मानों ये ऊँचाई से शीघ्र ही दर्शकों के पाप पुन को नष्ट करने वाले हैं । अपूर्व पुण्य परमाणुनों से निर्मित समुन्नत जिनालय पाप समूह का नाश करने में पूर्णतः समर्थ हैं । अर्थात् देखते ही दर्शकों के मानसिक कालुष्य को नष्ट कर परम शान्ति प्रदान करते हैं ।। २२ ।।
मालावलम्बी शीतांशु करस्पर्शः सुखावहः । प्रस्योऽपि प्रिय स्त्रिभि रताम्ते यत्र सेव्यते ॥ २३॥
यहाँ यत्र-तत्र क्रीडा गृह बने हुए हैं। उनमें अनेकों झरोले हैं उनसे इन्दु की किरणें रात्रि में प्रविष्ट हो कामियों का स्पर्श कर उन्हें उत्तेजित करती हैं शान्ति प्रदान करती हैं । अपनी-अपनी प्रियानों के साथ रति सुखानुभव कर अमित जन अन्त में विधु (चन्द्रमा) को सुखद-शीतल चन्द्रिका किरणों को सेवन कर श्रम को दूर करते हैं । सुखोत्पादक चन्द्र ज्योत्स्ना एवं शीतल वाय मिएनों की बान्सि और स्लान्ति को दूर कर देती है ॥ २३॥