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यहाँ की जनता धन-जन समृद्धि के साथ जिन धर्म परायण है । जिन धर्म सेवन से शोभायमान रहती है। धर्मात्मा होने से यहाँ दुर्नय, प्रातङ्क: _इति, भीति आदि व्याधियों का नाम निशान भी नहीं है 11 १४ ॥
विशेषार्थ :- धर्म सुख का कारण है । जहाँ धर्म और धर्मात्मामों का निवास है वहाँ प्राधि-व्याधि शोक-संताप पा नहीं सकते । प्रजा निरन्तर अपने धर्म कार्यों में रत है इसलिए अन्याय और तज्जन्य क्लेशों का भी यहाँ प्रभाव है।
कल्याण भूमयो यत्र जिनानां विहितोत्सवा: । भक्तयागतामरै भति पापापोहन पहिताः ॥१५ ।।
इस देश की पावन भूमि में तीर्थङ्करादि के कल्याणक-(गर्भ-जन्म, तप, ज्ञान, मोक्ष) निरन्तर सम्पादित किये जाते हैं। जिनालयों में हमेशा नाना प्रकार के उत्सव होते रहते हैं। पूजा विधानादि किये जाते हैं। यहाँ न केवल मनुष्य ही पाते हैं अपितु पाप कर्म के नाश करने हेतु देव लोग भी पाते हैं ।। १५॥
विशेषार्थ :-इस पद्य में जिन चैत्य और जिनालय का विशेष महात्म्य वरिणत किया है। जिन बिम्ब दर्शन से अनेक भव के पापकर्म-दुष्कर्म नष्ट हो जाते हैं । नवीन पुण्योपार्जन होता है ।
मध्येस्ति तस्य देशस्य बसन्तादि पुरं पुरम् । निर्भतिस्ता मराषीश मगरं निज शोभया ।। १६ ।।
इस अनंग देश के मध्य में वसन्तपुर नाम का अति रमणीक नगर है। यह अपनी शोभा से अमरपुरी अर्थात् स्वर्ग की नगरियों की रमणीयता को भी तिरस्कृत करता है ।। १६ ।।
मही प्रवेशमाविश्य चौरेजेव पयोषिना। जातिका ध्याजतो वयरन हरणेच्छपाः ।। १७॥
इस नगर में चारों ओर दीर्व खाइयां हैं। अनेकों नदियाँ इनमें प्रविष्ट होती हैं। ऐसा प्रतीत होता है मानों इस रत्नगर्भा वसुधा के रत्नों को चुराने की इच्छा से ये खाइयों में प्रविष्ट हो रही हैं । अर्थात् खाइयों के बाहने से समुद्र का जल नदियों के द्वारा एकमेक कर दिया गया है ॥ १७॥