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( सप्तम् — सर्ग )
अथामात्यः समं राज्ञा तवेति प्रविचारितम् । फुलं यस्य न जानीमो दीयतां बेहजां कथम् ॥ १ ॥
कुमार ने दुष्ट- उन्मत्त महाभीषण गज को वश में कर लिया । तदनुसार राजा को उसे कन्या रत्न प्रदान करना है । कन्या अपने जातीय शुद्ध कुल वंश परम्परा वाले को ही दी जा सकती है । प्रतः श्रागमानुसार कन्या प्रदान करना चाहिए यह सोच कर उसने अपनी मन्त्रिमण्डल को बुलाया एवं विचार-विमर्ष करने लगा कि हे मन्त्रिगण ! जिसका कुल वंश, जाति यज्ञात है उसे कन्या किस प्रकार दी जाये ? भ्रतः अन्य पारितोषिक दिया जा सकता है परन्तु कन्या प्रदान के लिए तो इसका कुलादि पता लगाना ही होगा ॥ १ ॥
ते
खाचि किमेतेन विकल्पेन वयोत्या कृतिरेवास्य कुलं कल्याण
इस पर मन्त्रियों ने उत्तर दिया राजन् ! यह सत्य है परन्तु इसके कुल वंश शुद्धि निःसंदेह है। क्योंकि कल्याण सूचक इसकी प्राकृति ही इसे उत्तम वंशोत्पन्न सूचित कर रही है । अतः इस सम्बन्ध में प्रापको कुछ भी विकल्प - सन्देह नहीं करना चाहिए ॥ २ ॥
विनोदेनामुना कोऽपि क्रोक्त्येष
पोद पटले नैव प्रखनो
महीपते । सूचकम् ॥ २ ॥
महामनाः । विवसाधिपः ॥ ३ ॥
वस्तुतः यह कोई महामना है। विशिष्ट पुरुष है । मात्र क्रीड़ार्थ यह रूप परिवर्तन कर इस प्रकार की चेष्टा कर रहा है । मेघ पटल के अन्तर्गत छिपे हुए सूर्य की भाँति यह कोई प्रतिभाशाली है || ३ ||
शौर्य लक्ष्य यशो रूप विज्ञानं र्नाकिनामापि । चमत्कारं करोत्येषो विन्स्य मस्य विचेष्ठितम् ॥ ४ ॥
देखिये जरा इसकी चेष्टा, यह अपने शौर्य, पराक्रम, यश, रूपलावण्य, विज्ञान कलाओं द्वारा इन्द्र को भी आश्चर्यचकित करता है । इन्द्र को भी पराभूत करने वाली हैं इसकी क्रियाएँ ॥ ४ ॥
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