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समय हो गया है मुझे जाने की जल्दी है, समय पर पहुंचना होगा न ? कर्तव्य पालन करना सत्पुरुषों का का कार्य है । ॥ ७६ ॥
निगति गत: सापि साई विमलमा तया । सुधिरं चिन्तयामास किमेतदिति विस्मिता ।। ७७ ।।
इस प्रकार निवेदन कर वह राजमन्दिर की मौर चला गया। इधर विमला और श्रीमती दोनों बिचार में पड़ गयीं । दोनों ही बहुत देर तक परस्पर चकित हो चिन्तवन करती रहीं यह किस प्रकार घटित हुआ। इसे कैसे ज्ञात हमा? यह कौन है ? यह कया क्या है ? इत्यादि प्रश्नों में उलझी रहीं ।। ७७ ।।
प्रन्यस्मिश्य समागत्य बासरे लगपसने । प्रारभ्य स्वागमं प्रोक्त त्यक्तायावन्नभश्वरी ।। ७८ ॥
पुनः तृतीय दिवस पाया। वामन रूप धारी कुमार फिर उसी प्रकार जिनभवन में प्रा पहुँचा । उसकी जिन भक्ति भी तो अद्वितीय थी। नाना स्तोत्रों से जिनदेव प्रभु की पूजा भक्ति सम्पन्न की। तदनन्तर उन सतियों के पास पाया और अपनी संगीत ध्यान में भागे का कथानक प्रारम्भ किया अर्थात् समुद्र से पार हो विद्याधर नगरी में पहुँचना, विद्याधर राजा की कन्या के साथ विवाह कर लाना और इसी चम्पानगर के उद्यान में उस विद्याधरी को छोड़कर गायब होने तक का सपना पूरा वृत्तान्त सुना दिया । बस इतना ही कहकर वह जाने को उद्यत ही हुमा कि ।। ७८ ॥
स्मित भौतानना बोचत्त तोऽसौ खग हजा। प्रसमाप्य कथां मागा बहि बातं ततः किम् ॥७६ ।।
मुस्कुराती हुयो वह विद्याधर की पुत्री अर्थात् इसी की तीसरी पत्नी बोल उठी. हे भन्न अधूरी कथा छोडकर नहीं जाना, कहिये इसके मागे क्या हुआ? ।। ७६ ॥
प्रातरेय भरिष्यामि सजल्प्येति ततो गतः । सम्पन्न प्रिय संङ्गाशा विस्मिता स्ता अधिस्पिताः ।।८।। पाप सुनना चाहती हैं तो ठीक है मैं प्रातः काल सुनाऊँगा, अभी
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