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अथवा क्यों विकल्प करूं ? संसार में अनेकों भव्य-पुण्य पुरुष पहले हो चुके हैं जिनके सामने कामदेव भी लज्जा को प्राप्त हो जाता था। अथात् उन्हीं कुल-मन्दिरो मे यह भी एक मनोभुव का पराभव करने वाला है ।। २५ ।।
यथा चिन्तित एवायं वरो विद्याभृदुत्तमः । सब्ध: पुण्येन कन्याया: कुत्राप्यप्राकृताकृतिः ॥ २६ ।।
इस प्रकार विमर्ष कर वह सोचने लगा, मेरी कन्या अतिशय पुण्य शालिनी है, उसने अपने पुण्य से ही यह अद्भुत स्वाभाविक सौन्दर्य युत, विद्याभूषित, गुण मण्डित उत्तम वर प्राप्त किया है। आश्चर्य कारक है इसकी सौम्य प्राकृति ।। २६ ॥
स्वयं आगत अनुकूल कुमार को पाकर भू-पति प्रादि संतुष्ट हए और अपनी कन्या के विवाह की योजना करने लगे। ज्योतिषी आये, पत्री-पत्रा दिखाये गये । तदनन्तर
प्रथान्येद्यः शुभै लग्ने सुमुहुर्ते ति धौ शुभे । विवाह मङ्गलं राजा कन्याया स्तेन संवधे ।। २७ ।।
किसी एक दिन विद्याधर नृपति ने शुभ लग्न, शुभ मुहूंत शुभदिन में राजकुमारी का मङ्गलमय विवाह सोत्साह उस कुमार के साथ कर , दिया । विधिवत् नाना गीत-नृत्य आदि महोत्सवों के साथ दोनों का का पाणिग्रहरण संस्कार सम्पादित कर दिया गया ॥२७॥
विज्ञाप्य श्वसुरं तेन दत्त चित्र विभूतिकः । प्रतस्थे स्वपुरं साकं कान्तया कान्तया तया ॥ २८ ।।
विवाह में इसे नाना प्रकार के चित्र विचित्र वस्वाभरणादि प्रदान किये समस्त विभूति प्राप्त कर अपने घर लौटने की भावना जाग्रत हुयी । उसने अपने श्वसुर से विनम्र प्रार्थना की और अनुमति प्राप्त कर प्रिया कान्ता के साथ निजपुर के लिए प्रस्थान किया ।। २८ ।।
चञ्चच्चाएवज यातं किङ्किणी क्वाण सुन्दरम् । प्रलम्भ मौक्तिकोद्दाम दामादयं बहु भूमिकम ॥ २६ ॥
श्वसुर से प्राप्त सुन्दर विमान में प्रारूढ़ हुए। उस विमान की १३२ ]