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________________ जिनवत जन्म चिसकार तय सइयउ बुलाइ, पूत रुपु पडि लिखु निकुताइ । लिखतह कहिउ सरीरह ठवणु, भगाइ सेठि सई आई हे कवतु ॥ अर्थ :--उस सूत्रधार को सेठ ने प्रसाद (पारितोषिक) दिया, एवं एक लाख द्रश्य का उसने ठाउ (उपहार दिया, उसे उस ज्ञानी ने रेशमरे कपड़े दिये तथा अपने चित्त को प्रमाण (स्थिर) करके उसने (एक) दृढ़ विचार किया । उसी समय उसने चित्रकार को बुलाया (तथा कहा)—मेरे पुत्र के रूप का चित्र बिना किसी कुताही (कमी-फसर) के लिण्डो । जब (चित्रकार ने) कहा कि शरीर का उसने चित्र उतार लिया है, तब सेठ (अपने स्वजनों मे) कहने लगा “इसे कौन ले जावेगा।" दाम - ब्य, एक सोने का सिक्का । पाट - पट्ट-रेशम । पटोल - पट्टकूल-रेशमी वस्त्र । उप्रल - स्थापना-चित्र, प्रतिकृति । [ १०५-१०६ ] विप्पु एक कउ प्राइसु भयउ, सरे पर लड़ चंपापुरि गया । भेटिउ विमसमती सा वाल, देइ भासीस पर छोडि विलाल ॥ बिमलमती पडु बोठउ जाम, गप बिहलंघल सघर परि ताम । हार डोर जसु सोहि अंग, चंदन सिजि सई उमंग ।। अर्थ:-एक विप्र को प्राज्ञा हुई; वह पट (चित्र) लेकर चंपापुरी गया । उस बाला विमलमती से उसने भेंट की तथा पार्शीवाद देकर चित्रपट को खोल कर उसने दिखलाया । विमलमती ने जब चित्रपट देखा तो वह विह्वलाङ्ग होकर धरा पर गिर पड़ी । उसके शरीर में हार | माला सुशोभित हो रहे थे । उसे चंदन से सींच कर सचेत कराया गया । पड - पद-चित्रपट । बिहलंघन -विलाङ्ग-व्याकुल शरीर वाली।
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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