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________________ जिदत्त चरित अर्थ :- "वह संगीत विनोद एवं कला में बढ़ी चढ़ी थी तथा उसने रत्न जटिल कंचुकी पहिन को एक तोकेको फिर रल्हू कवि कहता है उसने ( ऊपर से ) श्राभूषण पहिन रखे थे ॥६॥ थी. ३५ जिसको भी वह एक बार दृष्टि फैला कर देखती थी उसे बहु काम के वाणों से मार डालती थी। उसके रूप-सौन्दर्य का वर्णन नहीं किया जा सकता है; (क्योंकि) उसके शरीर को देखकर स्वयं कामदेव भी माकुल हो उठता था । [ १०१ - १०२ 1 J माल्हंती विलासगड चल दरसन देखि कुमुशिवर ढलइ । असी विमलम गुण भागली, धम्म बुधि सो भट्ट साभली ॥ हंस गमरण सा पदमणि भारिण, सरवर विठि सख सिह महाति । रूप देखि सुर विभव कर, नरसूर लोइ सयलु पटतरह १ IE अर्थ:-वह लोक एवं विलास गति से चलती थी और उसका दर्शन ( रूप ) देखकर कुमुनि पिघल जाते थे । इस प्रकार की वह गुणों में बड़ीची मिलती (नाम की थी जिसकी भली बुद्धि धर्म की ओर थी ।। १०१ ।। वह हंस की मी चाल चलने वाली मानों पद्मिनी थी और वह अपनी सखियों के साथ नहाते हुये सरोवर में दिखाई पड़ी। उसका रूप देखकर देवता भी विस्मय (आश्चर्य ) करते थे और समस्त लोग तरलोक एवं मुरलोक में (उपसे) तुलना करते थे ॥१०२॥ सुखबार बज्र पाट पटोले ' १०३-१०४ | भयउ पसाउ, दोयों लाल दाम कौ छाउ । आरण, विठ मंनु कि चित्तु परवारिष । दोने १. पटतरे मूलपाट । -
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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