SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगव वर्णन अर्थ :-समी लोग प्रेम से रहते थे। उन्होंने अपने विहार (जिन मन्दिर) स्वर्ण-मय बना लिये थे। वहां दूसरे की मृत्यु की वांछा कोई नहीं करते थे तथा सभी जीव दया का पालन करते थे । सुपियार - सु.:-पिय+तर-प्रत्यन्त प्रिय ! मीचु - मृत्यु । कोली भाली पालहि श्या, पटवा जीवकट इंहि मया । पारधी जीव रण घालहि घाउ, ज्या धम्मु कउ सबही भार अर्थ :-कोली और माली (तक) मी जहाँ दया धर्म का पालन करते थे । पटवा एवं सपेस भी दयावान थे । वधिक जीवों पर कोई मौ पात नहीं करते थे । (इस प्रकार) सभी का दया धर्म का भाष था । कोली - कौलिक-सूती वस्त्र बुनने घाले। पटवा - पटवाय-रेशमी वस्त्र बुनने वाला। जीवक - सपेरा। पारधी - पापधि-वधिक । [ ४४ । वाभरण खत्री प्रवरति चर्म, ते सब पालक सरावग धर्म । मारण पाइ दिया कलमली, जिरणवर गहि छत्तीसज कुली ॥ अर्थ :-ब्राह्मण सभा क्षत्रिय चर्म (के प्रयोग) से विरत थे और वे सभी श्रावक धर्म का पालन करते थे। मारने (हिंसा करने) का नाम उनको कष्ट देता था और छत्तीसों जातियां जिनेन्द्र भगवान को नमस्कार भारती थी। अवरस - अवरत-प्रपरक्त-बिरक्त ।
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy