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________________ जरणवत्त चरित ( बसंतपुर नगर वर्णन ) चौपई [ ४० ] राज-याणु किमु करि वणियह, परमसु सन्शु खंड जारिणयद । बसइ वसंतु एयर सो घराउ, चंबसिहरु राजा तह तरिणउ ।। मर्थ :-राजा के स्थान (राजधानी) का किस प्रकार वर्णन किया जाय ? उसे तो प्रत्यक्ष स्वर्ग का टुकष्ठा ही जानो। यह वसंसपुर नगर बना बसा हुमा था और उसका चन्द्रशेखर नाम का राजा था । थाणु - स्थान । पाचवु - प्रत्यक्ष । सागु - स्वर्ग । चंदसिहरु - चन्द्रमोखर । चंदसेखर राजा के भवरण, दिपहि त माणिक मोती रयण । सयतु अंतेउर रूपनिवानु, बोस बोस सबण्ड प्रवामु ॥ अर्थ :-चन्द्रशेखर राजा के महल से माणिक मोती एवं रन चभकते थे (प्रथवा, वे महल माणिक, मोती एवं रनों से चमकते थे)। उसका समस्त अन्तःपुर रूप का निवास या सवा सबके लिये बीस बीस प्रानाम (महल) थे । योउम - अन्तःपुर । रयर्ण - रत्न। सयलु - सकल, समस्त । मधनु - सबके लिये-स्वर्ण । वसहि त सयल लोग सुपियार, कंदण मइ तिन्हु कियए विहार । पर कल मीचु ण बछड़ कोइ, जीव दया पालइ सम कोइ ॥
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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