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________________ ( रचनाकाल ) [ २६ ] संवत तेरह चडवण्णे भावव सुदि पंचम गुरु दिष्णं । स्वाति नखत्त चंदु तुमहतो, कवइ रहू पणवद सरसुती । तुल - तुला । अर्थ :- संवत् १३५४ की भाद्रपद शुक्ला पंचमी बृहस्पतिवार को जब चन्द्रस्वाति नक्षत्र में था और तुला राशि थी, कवि रल्ह सरस्वती को नमस्कार करता है । मग वरन - (कथा का प्रारम्भ ) | लवणो हि उपासहि फिरिउ, जंबूदीपु मभिः विप्पुरिव । दाहिण भरलेस जिण क्षणी, वह कालु तहि प्रविण ।। - विष्णुरिउ विस्कुरित । अर्थ :- लवणोदचि समुद्र जिसके चारों ओर फिरा हुआ है, ऐसे जम्बूद्वीप के मध्य में विस्कुरित दक्षिण दिशा में भरत क्षेत्र हैं जहां काल चल रहा है । वहि लवणोदधि । ३० ] भरत अवसरी - अवसपिरो । - भरत क्षेत्र । ' ( मगध देश का वर्णन ) | ३१ j सवइण पाउ वत्थ जहि ठाउ, मह देसु तहि कहिथउ गाइ । पामरि घराण प्रवासह वही जगु वह छूट से पड़ी ।।
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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