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________________ स्तुति खण्ड जिनेन्द्र नाथों को शरण देने वाले हैं। चन्द्रप्रभ स्वामी शान्त चित्त एवं शान्त स्वभाव वाले हैं तथा पुष्पदंत मोक्ष नगरी के राजा हैं । पमप्पहु - पद्मप्रभ । सिवपुरि - शिवपुरी-मोक्षनगरी । [ सामिय स्वामी । ५ जगत्तय - 1 - ] जित सोयसु ग्रह सोयल वयणु, तु सेयंस जयत्तय सरगु । वासुमुज्ज प्रहरणे सरीर, जय जय विमल अतुल बलवीर ।। - अर्थ :- और शीतलनाथ जिनेंद्र गोतल बचन वाले हैं तथा हे यांसनाथ, तुम तीन जगत के शररणभूत हो । वासपूज्य स्वामी तुम लाल रंग के शरीर वाले हो तथा अतुल बल के धारक हे विमलनाथ तुम्हारी जय हो । 1 सीयलु - शीतल । जगाय | ६ ] सहाउ - तिहुवरण त्रिभुवन पहु - प्रभु । १. मूलपाठ 'जगगाह' है । स्वभाव । जिणु धनंतु तिहूवर जगरणत्षु", वस्तु धम्म उद्धरण समस्यु । जय पहु संतिरणरह वह हरण, जय जय कुंथु जीव दय करण || अर्थ :- अनन्तनाब जितेंद्र जो तीनों लोकों तथा जगत के स्वामी हैं, धर्मनाथ जो धर्म का उद्धार करने में समर्थ है, शान्तिनाथ जो जगत के नाम हैं तथा दुःखों का हरण करने करते हैं तथा जीवों पर दया करने वाले कुपनाथ स्वामी की जय हो । धम्मु - धर्मनाथ । समत्यु - समर्थ
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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