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________________ जिरणवत्त चरित [ २ ] संजमु नेमु अम्मु तस जाणु, जो णिसुबइ जिरणदत पुराणु । संपत्ति पुत्त प्रवर नसु होइ, महिपाल वुल न देखइ कोइ ॥ अर्थ :-जो इस जिनदत्त पुराण को सुनता है (जीवन में) सयम, निगम और धर्म उसको (प्राप्त हुआ) जानो। उसको बमव, सन्तान तथा यश (का लाम) होता है तथा बह पृथ्वी पर कोई भी दुःख नहीं देखता है । संजमु पु. (संयम) – हिंसादि पाप कर्मों से निवृत्ति - दश धर्मों में से एक धर्म । नेमु - नियम धर्म, व्रत उपवास प्रादि । जय जगरगाह रिसीस जिरणेब, रणहि प्रजिय गय गरगहरविंद । जिण, संभव अहिणवण देउ, सुमहगाह परराषउं गय लेउ । अर्थ :-जगत् प्रभु ऋषभ जिनेन्द्र को जय हो तथा गणधरों द्वारा पूजित अजितनाथ के चरणों में नमस्कार हो । जिनेन्द्र संभवनाथ, अभिनन्दन देव, सुमतिनाथ को प्रणाम करता हूँ जो मत लेप (निष्पाप) हुये हैं । रिमीन - ऋषभेण, ऋषभदेव स्वामी। गणहाविद - गाधरद । गय ले उ – गतलेप-चला गया है पा जिसका । पटमपट्ट सामिय दुहहरण, जिण सुपामु जरा असरण सरण । चंदप्पटु समचित्त सहाउ, पुष्पर्यतु सिमपुरि कार राउ ।। मयं :--पमपम स्वामी दुःखों का हरण करने वाले है तथा सुपाश्वनाथ
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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