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________________ 'हम' होगा, जिसका अर्थ होगा 'हमारा' । *६१. ४३८.४: 'सद राजा उठि लागिउ पाइ' का अर्थ किया गया है. 'सब राजा के घरणों से लगे', जब कि होना चाहिये 'राजा सइ (स्वयं) उठकर उस (जिरणदत्त) के पैरों लगा' । ६२. ४४१.४: प्रति में पाठ 'सीरघ' है, जिसके स्थान पर सीघर' का सुझाव दिया गगा है, किन्तु 'सार' ठीक इसी प्रकार (छंद ४६८ में) प्राया हुअा है, इसलिए लगता है कि प्रति का पार पशुद्ध नहीं है...---- ६३. ४४४.२, ४५६.१: प्रथम स्थान पर 'ठा' का प्रथं 'उठकर' किया गया है, दूसरे स्थान पर 'ठाठा करना' अर्थ में यह यथावत् है। किन्तु 'ठाठा करना' का अर्थ 'सज्जा करना' तथा 'ठाठा' का अर्थ 'सजे-बज हुए' ज्ञात होता है। ६४. ४४६.१: 'देस कुछार' का अर्थ 'कुछारु देस किया गया है जो कि निरर्थक है, किन्तु शुद्ध पाठ कुछार' के स्थान पर 'कुठार' 2. 'कोठार' ज्ञात होता है (दे. छद्र ४७१) जो सं. कोठागार मण्डागार, मण्डार है । ६५. ४५३.३-४: 'हाकि निसग जोष्टि अरणु हणे, अपुनइ देश पलाग घणे' का अर्थ किया गया है, 'जब समस्त निशानों को जोड़कर उन पर चोट की गई तो बहुत से स्वतः ही अपने देश 'माग गमे', जब कि होना चाहिय'हक्का (पुकार) लगाकर जब सेना के लोगों ने निशानों पर प्राघात किए। तो अनेक देश | और उनके राजा अपने-माप हो भाग निकले। *६६. ४५६. ३: । परिजा भागि गई जहि गर' का अर्थ नहीं किया गया है, होना चाहिये 'प्रजा मागकर वहाँ गई जहां पर [गढ में] राजा था। ६७. ४५७. ४; 'रचे मारु कह सीसे घणी' का अर्थ किया गया है, 'मार करने के लिये अनेकानेक शिरस्त्राण रचे गये' किन्तु होना चाहिये 'मारों (योद्धानों) ने अनेक कौसीसे (2_कपि शीर्प:-बुर्जे) बनाई"।
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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