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________________ कोदव कुद्दय /_ कुद्रव (चांबल से भिन्न) एक प्रकार का निकृष्ट धान्य है । ५४. ४११ : 'भूबित (मूषित)' का प्रय ‘प्रसन्न हुई' किया गया है, जब कि होना चाहिये 'साभूपित हुई। ५५. ४१८ ३-४: 'निय म [] बिरह न पात्र जााए ! धूसह दिण्ण राई की प्रागा।' का अर्थ किया गया है, 'इस बियोग के वह कोई कायदे-कानून नहीं जानता था, किन्तु उसने तो धूर्त को राजा की दुहाई दिलादी', जबकि होना चाहिये, '[अपनी स्त्रियों को देखने पर अपने मन में जब उसे उनमें वियोग के लक्षण नहीं ज्ञात हुए, तो उसने उक्त पूर्त को राजा की प्रान (सौगन्ध) दो।' ५६. ४२५.२: 'हाहा कारु [अ] पर कित तवहि' का अर्य किया गया है, 'सब दूसरो ने हाहाकार किया', किन्तु होना चाहिये, 'तब [उसको] अपर स्त्रियों ने भी उसमें हुंकारी मरो - उन्होंने भी उसको मोन्नि उक्त धूर्त को पति स्वीकार किया। ५७. ४२५.४, "निय मामिउ तिन्हु वाडर बहिउ' का अर्थ किया गया है। 'अपने स्वामी पर तीनों ही खड़ग पलानो, जब कि होना चाहिये, 'अपने [विदेश से लौटे हुये वास्तविक] पती पर तीनों ने खड्ग चलाया है।' ५८. ४२६.१-२; राय पमुह सब जाणहु झूठ' का अर्थ किया गया है 'सब कुछ (हप्पा सेंठ के वचन को)', जब कि कदाचित् होना चाहिये '[उन दुष्टात्रों के समस्त कथन को' । .. ५६. ४३२.२: 'संमलि पुहम ताह मुह बात' का अर्थ किया गया है, 'हे पृथ्वीपति! उसकी बात को स्मरण कर', जब कि होना चाहिले, 'हे पृथ्वीपति, मेरी बात सुनो। ! ... *६.. ४३२.४: 'हेम (हम? पिउ देव नहीं सावलउ' का मर्थ किया गया है, 'हमारा पति तो, हे देव! सोने का सा है, सांवला नहीं हैं, किन्तु 'हेम' पाठ, • जिससे 'सोने का सा' प्रथं लिया गया है, असंगत है, उसके स्थान पर शुद्ध पाठ
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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