SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्वयम्भू, पुष्पदंत, धनपाल, वीर, नयनन्दि, घवल कनकामर, लातू जमित्रहल, नरसेनदेव जैसे विद्वानों ने अपनी कृतियों से अपभ्रश साहित्य को धीवृद्धि प्रदान कर रक्खी थी । वत्त मान भारतीय भाषाओं के साहित्य पर भी अपनश का प्रभाव बना हुया था। विक्रमीय ग्यारहवीं से चौदहवीं शताब्दी का काल जिसे हिन्दी का प्रादिकान कहा जाता है, भाषा की दृष्टि से अपनश से बहुत प्रभावित है । जिणदत्त चरित की भाषा को हम पुरानी हिन्दी के नाम से सम्बोपित कर सकते हैं । 'जिरणदत्त चरित' अपभ्रश एवं हिन्दी भाषा की एक बोच की कड़ी है । अपभ्रंश भाषा ने धीरे धीरे हिन्दी का रूप किस प्रकार लिया, यह इस काव्य से और सधार के 'प्रद्युम्न-चरित' जैसी रचनामों से अच्छी तरह जाना जा सकता है । रचना अपभ्रंश एव राजस्थानी बहूल शब्दों से युक्त है किन्तु हिन्दी के ट्रेक शब्दों का भो उसमें प्रयोग हुआ है। मारत पर उस समय यद्यपि मुसलमानों का शासन था लेकिन उनको साहित्य एवं संस्कृति का उस समय तक भारतीय जीवन, साहित्य एवं संस्कृति पर अधिक प्रभाव नहीं पड़ा था। साहित्य में प्रायः पूर्ण रूप से भारतीयता थी। हिन्दी के काव्यों का विकास प्रायः अपभ्रंश काव्यों के अनुसरण से हुआ । १४ वीं शताब्दी तक हिन्दी साहित्य को जो रचना हुई उस पर तो अपभ्रश का प्रभाव रहा ही, किन्तु १४ वीं के बाद लिखे गये पौराणिक एवं रोमांचक पोली के प्रबन्ध काव्यों पर भी अपभ्रश के काव्यों का सीधा प्रभाव दिखलाई पड़ता है। काव्य-रूप 'जिगदत्त चरित' रोमाञ्चक शैली का चरित है जिनका नायक धीरोदात्त है । वह सवंशोत्पन्न है, वीर है। अनेक विपत्तियों में भी नहीं -..- . १. प्रद्य म्न चरित - संपादक डॉ. कस्तूरचंद कासलीवाल प्रकाशक - दि० जन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी । तेईम
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy