SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 24
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वारा अाक्रमण, विद्याधरी द्वारा करकाण्डु का अपहरण एवं विवाह, रतिवेन एवं मदनावली से मिलन की घटनाओं का रोमांबक रीति से वर्णन किया गया है । बीच बीच में अवान्तर कथामें भी बरिणत है । करकण्ड अन्त में साधू, जीवन व्यतीत कर निवरण प्राप्त करते हैं। प्रद्युम्न प्रद्युम्न श्री कृष्ण के पुत्र थे । रुक्मिणी इनकी माता का नाम था , जन्म की छछी रात्रि को ही इन्हें धमकेनु प्रसर हरा कर ले गया और मन में इन्हें एक गिला के नीचे दबा कर च ना गमा । जगी रामय वालनंवर विद्याधर ने इन्हें उठा लिया और अपनी स्त्री को पूत्र सम में पालने के लिय दे दिया । प्रद्युम्न में युवावस्था को प्राप्त करने पर कालसंवर के शत्र, सिंहस्थ को पराजित किया । प्रद्य म्न का बल एवं उसकी शक्ति देख कर अन्य राजकुमार उससे जलने लगे । जिनमन्दिर के दर्शन के बहाने वे उने का में ले गये और उसको विपसियों से लड़ने के लिये अकेला छोड़ कर भाग पाए । लेकिन प्रद्य म्न डरा नहीं और उनपर विजय प्राप्त कर उसने अनेकों विद्याएं प्राप्त. की । वापिस लौटने अपनी माना कंचनमाला से तीन विधायें चतरता से प्राप्त को किन्तु उसके कहे अनुसार काम न करने का संग उनकी माता का ही कोष भाजन बनना पड़ा । कालसंवर नी प्रधान को मारने की सोचने लगा लेकिन अन्त में नारद द्वारा बीच बत्राव करने पर वास्तविक स्थिति का पता लगा। प्रद्य म्न द्वारिका वापस लौट पाये । मार्ग में वे दुर्योधन की कन्या को बल पूर्वक छीन कर विमान द्वारा द्वारिका पाए । वारिका पहुंचने पर सत्यभाम। के पुत्र मानुकुमार को अपनी गनेको नियात्रों से खूब छकाया । तदनंतर ब्रह्मबारी का येण बना कर में अपनी माता मुक्मिणी के पास पहुँचा। वहां उन्होंने सत्यभामा की दासियों का विकृत रूम कर दिया। इस पश्चात् प्रद्युम्न ने मायामयी रुक्मिणी की बाह पकड़ कर उसे श्रीकृष्ण की सभा के आगे से ले जाते हुए ललकारा । दोनों ओर की सेना आमने सामने आ इटी तथा श्रीकरण एवं प्रद्य म्न में खूब कमासान युद्ध हुआ। किसी की भी हार न होने से पूर्व श्रीस
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy