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गिरिनगर के राजा को रक्षा की और उसके बदले उसको पुत्री से विवाह किया। इसके पश्चात् उसने प्रबंध नगर के मत्याचारी राना सुकंठ का वध किया और उसको पुची रुक्मिणी से विवाह किया । पन्त में उसने पिहितासव मुनि से अपनी प्रिया लक्ष्मीमती के पूर्व भव की कथा एवं थ तपंचमी के उपवास के फल का वर्णन सुना । श्रीधर द्वारा दीक्षा लेने के कारण उसके पिता ने नागकुमार को बुलाकर और उसे राज्य देकर स्वयं दीक्षा धारण कर ली। नागकुमार ने राज्य सुख भोग फर मन्त में साधु जीवन अपनाया मोर मर कर स्वर्ग प्राप्त किया । महाकवि पुष्पदंत का अपभ्रक भाषा में चिबद्ध "सायकुमार चरिउ' इस कथा की एक बहुत सुन्दर रचना है।
भविष्यदत्त
भविष्यदत्त एक श्रेष्ठि पुत्र है । वह अपने सौतेले भाई बन्धुदत्त के साथ व्यापार के लिये विदेश जाता है वहाँ वह खूब धन कमाता है और विवाह भी करता है । उसका सौतेला भाई उसे बार-बार धोखा देता है भौर एक दिन चन में उसे अकेला छोड़कर उसकी पत्नी के साथ लौट प्राता है। भविष्यदत्त मी एक पथिक को सहायता से घर लौटता है और राजा को प्रसन्न करके राजा कन्मा से विवाह कर लेता है । भविष्यदत का पूर्वाद्ध जीवन रोमाञ्चक और साहसिक यात्राओं एवं आश्चर्यजनक घटनामों से भरा पड़ा है । उत्तरार्द्ध में युद्ध एवं पूर्व भवों के वर्मन की बहुलता है । भविष्यदत्त के जीवन पर कितनी ही रचनायें मिलती हैं। इन रचनायों में धनपाल कृत "मविसयत्तस्था" अत्यधिक सुन्दर काव्य है ।
फरफुण्ड
मुनि कनकामर ने करकुण्डु के जीवन पर अपम्रश में बहुत सुन्दर काश्य लिखा है जो दश संधियों में विभक्त है । यह एक प्रेमाख्यानक कथा है जिसमें करकण्डु का मदनावली से विवाह, विद्याधर द्वारा मदनावली-करण, सिंहलयात्रा. वहाँ की राजकुमारी रनिवेगा के साथ विवाह, मार्ग में मच्छु
जगणीच