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________________ जिरायत चरित अर्थ :पीछे जिनदत्त ने अवसर पाकर मुनि कहने को निवेदन किया । हे ज्ञानवंत स्वामी, मुझ पर दया ( स्फुट ) शंका को दूर कीजिये ।। ५२५ । । १६० श्रेष्ठ से सर्व वृतांत करके मेरे मन की हे स्वामी, किस कारण से चारों स्त्रियों से मेरा अत्यधिक स्नेह है । तथा उनमें से दो चंपापुरी, एक सिंहल द्वीप से और एक सुन्दर विद्याधरी कैसे प्राप्त हुई सो सब कहो ।। ५२६ ।। F पूर्व भव वर्णन ! ५२७ - ५२८ 1 विमलाएणु बोसइ ए रिसड, देसि अवंती नामें विसउ । पुरि उज्जेरिए प्रशिय गिलास, तह धरणदेव सेठि गुणरासि ॥ सहि सिवदेउ बहु वाल पूतु धम्म कम्म करि भयउ संजुत्त । कार जिससद पहाण करतु ह्यट फुलि गक सग्ग तुरंतु ॥ अर्थः बिमलानन (निर्मल मुहं वाले ) ऋषि इस प्रकार वोले, "विश्व में अवंती नाम का देश है उसके उज्जयिणी नगरी में प्रजित (राजा) का निवास था। वहीं गुग्णों को राशी वाला ( गुणवान ) एक धनदेव सेठ था ।।५२३| — उसके धर्म कर्म से संयुक्त शिवदेव नामका बुविमान बालक पुत्र हुआ 1 ( उस बालक का ) पिता ( धनदेव ) जिनेन्द्र भगवान का अभिषेक करते हुए प्रोग से मरकर तुरन्त ही स्वर्गवासी हुआ ॥१५२८ ।। कुनि / कुलिय - कुयोग [ ५२६-५३० J तु चरिरह पौडिज धड पर छाडिया नम श्रापुराह । हि कि हिवह वसह जिए सोइ, वजी करहि तु भोजा होइ ॥
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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