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________________ जोबदेव जिनबत्त मिलन लापड! .लंपट । के / कियत- कितना [ ४५६-४८० ] साचउ चंद सिखर बङ लगाई, वरु किनु मयरहं कुहला बबइ । वरु किनु बेसु निराला जाल, सेठि अफि जीवा कइ काल । "ल रहे सेठ जह जाण, तेज सेठिणि सिद्ध कहद नियारण । रायण्ड भरण ठाणु छइ भयउ, कारण तिन्ह रण मादिपज । अर्थ:- चन्द्रशेखर बहुत सत्य कह रहा था, भले ही क्यों न नगर में कुचला बोदे और भले ही क्यों न देश मात्र को जला दे, सेठ की देकर मैं कितने समय तक जीऊँगा ! ।।४७६।। जब वह सेठ को ज्ञात हुना......तब वह सेठानी से निदान कहने लगा। "राजा का भी मरने का समय प्रागया है, कारण यह है कि उन्होंने (शत्रुने) युद्ध की तैयारी की है" ॥४८०1। मव । लय - कहना, बोलना, जोवदेव जिनदत्त मिलन [ ४८१-४८२ । पुशु जीवदेज फहत हियइ ए बयण, पूत सोमु हम फूटे गयण । (सुत) विदेसु हमु प्रायो मरण, सेठिरण देहऐ कर करण । भणय सेठि रे ददय निकिंठ, एक बार जिणवत्त न दिछ । सवु सेठिरिंग समुझावरण लियज, करि प्रसारण पाह विक हियउ ।। अर्थ :-- फिर जीवश्व अपने हृदय में यह वचन कहने लगा, “पुत्र के शोफ में हमारे नयन फूट गरे हैं । पुत्र जब विदेश में है तब हमारी मृत्यु घाई है, सेठानी देखो अब क्या करना चाहिये" । ।।४८१।।
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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