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________________ बसन्तपुर के लिये प्रस्थान [ ४५० - ४५१ ] (सम) द्यौ राज अंसेजर घणी, समाज विमल जिमला सेडिगो 1 समाज नायर नयय करे लोग, जिरायत च (लह) करइ अब सोगु ॥ लए तुरंग मोल वह लाख, महमल - सहस्त्र करह प्रसंख । सहस छत्तीस जोणि चाउरंतु चतु बलु दोन पवाणु ॥ अर्थ :( जिनदत्त को ) राजा के अन्तःपुर ने सघन रूप से विदा दो । विमल सेठ एवं विमला सेठाणी ने भी उसे विदा दी। नगर निवासियों ने विदा दी तथा ( ज्योंही) जिनदत्त चला लोग शोक करने लगे । ।४५०॥ घोड़ यह हार उसने दर्श साख असंख्य ऊँट मोल लिये। बत्तीस हजार शक्ति प्रमारण चतुरंगिनी सेना जोड़ ली ( इकट्ठी करली ||४५१० नायर नागर १३६ अर्थ :पैदल एवं धनुर्धारी है, वह सेना जोड़ कर पैदल चला ऐसे रावत चल में असंख्य राजा मे ॥१४५२ ।। दलित हाथो तथा इस प्रकार उसने अपनी [ ४५२ - ४५३ 1 पाइक षाणुक हर ग्रह कोडि, पयदल चलिउ रायसिंह जोडि । तारि खुसि गिरि जिन्दु पाहि, से प्रसंख रावत बल माह 11 जरबड़ मूर्ति न सूझ सरणी 1 प्रयुज बेस पलारणे धरणे ॥॥ जिरणदत्त हि कंपड़ धरणि हाकि निवारण जोडि जणू हस, दश करोड़ थे । रायसिंह कवि कहता जिसके छत्रधारी राजा पांवों में गिरते थे, जिनदत के चलते ही पृथ्वी कांपने लगी। इतनी धूल उठने लगी कि सूर्य नहीं दिखने लगा 1 जब समस्त निवानों को जोड़ कर उन पर चोट की गई तो बहुत से स्वत: ही अपने देश भाग गये ।।४५३ ।।
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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