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________________ बौने के रूप में स्त्रियां कुभीपाक नर्क में जा पड़ी । झूठ बोलकर वे नर्क गई। हम उन स्त्रियों की भांति (नहीं) हो गई है ? ।।४२७।। [ ४९८-४२६ ] भरगद वावणउ तुम्ह अलिय म चबहु, जैसे होइ तुम्ह पिउ सेसों मुहि करहु । लछण यतीसह परिचिउ अंगु, रूप देखि मोहियइ अनंगु ।। सिह थापियो पटोलो दलि, (विजा) वन्तु रूपिणी सभालि । छाडी बावण कला हीर्णगु, भयो जित सामले मंगु । अर्थ :--उस बोने ने महा. "तुम भी मत जोलो साहारः पति था वैसा ही मुझे करदा ।" उसका शरीर बत्तीस लक्षणों मे युक्त हो गया जिसे देखकर कामदेव मो माहिल हुश्रा ।।४२८।। उसने अपना गिर रेशमी वस्त्र डाल कर इक लिया तथा बहुरूपिरगी विद्या का स्मरण किया । ह्रीन अंग बौने की कला छोड़ दी, तब जिनदत्त सांवले शरीर का हो गया ।।४२६।। अलिय 2. अलीक-मसत्य । [ ४३०-४३१ ] सोस उघाडि धालियउ रालि, मोही सभा सयलु तिहि काल 1 तिहू नारिस्थु फहद हसंतु, हबहु ति तुम्हारउ कंसु ।। देखि तिरी ते प्रचरिजु भयउ, चाहहि निरलहि ते विर्भा । अपरंपर ते कहइ जोइ, किछु किछु होर किरनि होइ ।। अर्थ – शिर उघाड करके तया पैरों में राल (रंग) डालकर (बहपाया) तो उस समय उसका रुप देखकर सारी समा माहित हो गई । उम ने तीनों स्त्रियों से हंसते हुये कहा, "अब मैं तुम्हारा पति हूँ ॥४३७।।
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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