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________________ जिणरत्त चरित उस धतं ने उन्हें अपार द्रव्य दिया । हे राजन् ! उन बालात्रों ने उसको अपना लिया। [सेठ के] वाणिज्य के लिए बारह वर्ष तक चले जाने के बीच उनके बेटा बेटी हो गए ॥४१५] [ ४१६-४१७ । मरिस बारह प्राय: जवरु, घर को विक्रम वोठी अबरु । लहर कहेडे भेट गवर राइ, मछु घर बरसद बोन्यो काहि ॥ तवहि भारत कात हसि कहइ, बात एक कउ कारणु कहह । हप्पा सेठि वह प्रख्या प्रपु, बेटा बेटी केरउ कापु॥ अर्थ :-जब बारह वर्ष पर सेठ घर लौटा तो उसे घर की व्यवस्था दूसरी ही दिखाई पड़ी। बहेडे | ? | लेकर जब उसने राजा से भेंट की तो कहा, "मेरा घर तूने किसको दे दिया ?" ||४१६।। तब राजा ने हंस कर कहा, "एक बात का कारण बता। वह अन्य व्यक्ति भी अपने को हापा सेठ और बेटे देटियों का बाप कहता है" ॥४१७।। { ४१८-४१६ ) हए। सेठि मन बिलखो भयज, मूड खुमाइ परि चठि गयज । नियम विरह न पावद मारण, धूतह दिण्ण राइ की प्राण ।। शियमणि धर्मा गयो सो तित्थु, पारवा सिंहासण हई जित्थु । हाथ जोरि तिनि विनयो राइ, जा पह दीनह करह पसाउ ।। अर्थ :-यह हण्या सेठ मन में दुःखित हुआ और शिर को खुजलाते हुए उठ कर घर को चना गया। इस बियोग के वह कोई कायदे-कानून नहीं जानता था किन्तु उसने तो धूर्त का राजा की दुहाई दिलादी ॥४१८ ।। अपने मन में चौंक कर वह (हमा सेठ) वहीं गया जहां नरपति का
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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