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________________ बौने के रूप में १२३ अर्थ :-राजा ने कहा, "हे वत्स ! यदि वे तुम्हारी पलियां हैं तब (उन्हें) बैठा कर मिल क्यों नहीं लेते ? यदि तुम स्फुट (सत्य) बचन कह रहे हो तो इन बीम (?) स्त्रियों के साथ तुमने क्यों विवाह किया ?" ।।३६२॥ ___ यदि वे कहेंगी कि तुम हमारे प्रिय पति हो तो वे बीस (?) पलियां किससे (कुछ) मांगेंगी ? तुम जब एक स्त्री को नहीं दे सकते हो, तब तुमने फिर बीस-तीस (2) के साथ विवाह क्यों किया ? ॥३६३॥ देम – कहना। बोल बोल वावरण तुरंड करइ, राजा बोल तु सासा पडा । मंत्री को मंत्र धरि ठाणु, इव तुह एकह कुमरि परिमाण । श्री रघुराइ पठायो दूतु, जाइ विहारह वेगि पहत । हाय जोडि बोलइ सतभाउ, तुम्ह पुणि तिल बुलाषा राउ । प्रभ :---बौना बोल बोल कर बुद्धि (भूल) कर रहा था पोर राजा के बोलते ही वह संशय में पड़ गया । मंत्री ने मंत्ररणा कर निश्चय करके कहा, "जम्हे अब एक ही कन्या व्याइनी है" ।।३६४॥ __ श्री रघु (गंधर्व) को राजा ने दूत बना कर भेजा । वह जाकर शोघ्न ही विहार (जिन-मन्दिर) में पहुँच गया । वहाँ हाथ जोड़ कर वह सत्यभार में कहने लगा, राजा सुम गीनों को पुन: बुला रहा है" ||३६५।। [ ३६६-३६७ ) एतउ वातु सवरण जघु सुरहि, लोभिज राउ परंपरु भगाई । काऊसगि रही तिह लाइ, प्रछीस ताहि झाण मणु लाद ॥ बाहुडि दूतू न बोलइ बयण, चहि रण देव रण वाहि नपर्नु । शो मद क्षेत्र धुलाई सही, तौनिउ झारण मजण सड़ रही।
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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