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________________ मेरी देह कुत्सित है लंबे पैर हैं । घारीर जैसे है ।। ३७७ ।। कुछील / कुद्रित ८ कुत्सिल । बौने के रूप में तथा एक हाथ का शरीर है। मेरे चार २ अंगुल लकड़ी हो, पिचका पेट है तथा पीठ कूबड़ौ [ कपाल निधान, उसरण वातलय पूचे कान | खि कुबाल कुही ऐसी देव मोकडी, श्रछ कपोल १ नाक छोपडी ।। कामकला तिहि तेरी कुमरि, रंभ सरंभ तिलोत्तम गवरि । जोग मोहरिय मृग लोपणु जासु, सा किमु सोहड मेes पस्सु ।। ३७८ - ३७६ ] अर्थ :- लाख बेढगी हैं तथा कपसल गड़ा हुआ है। दांत हसिया (जैसे ) तथा कान बुने हैं। ह्र देव कुहनी जंमी मुंगरी हो, गाल बैठे हु तथा नाक चिपटी है ||३७|| — ( दूसरी ओर ) तेरी राजकुमारी काम की कला है। बहु रंभा, तिलो तमा एवं गौरी है । वह जगत् मोहिनी है, जिसके लोचन मृगों के जैसे है । यह मेरे पास कैसे सुशोभित होगी ? ॥ ३७६ ॥ B दातला / दात्र घास काटने की हँसिया । बैठना । अछ् ८ ग्रास १. कपाल मूल पाठ है । ११६ [ ३८० - ३०१ ] पडही नयर माहि याजहि गयषर वर कन्य धरिम हाथ मइ मंतिहि तव हिप बेटी देहि कुचालि म परणे । वावरण भाट, ग्रंथ उठि जाउ प्रापणी वाट || कंपियज, कूड चालि, कोली मंतु देउ सबु क्रिमज । लागि म देवतु ढालि ।।
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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