SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 161
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बौने के रूप में ११७ [ ३७०-३७१ ] विमा वलाह जहि अर्थाह पास, डिषि विमाणु गयौ कलाप्त । तिह भवहि जहि करी खियाति, हथिए... वपुडा केतो बात ।। तउ बाबरणउ हकारिउ राइ, पूछउ वात कहज सतभाउ । तू परछण्ण बोर हहि ..., प्रापउ किन पयासहि मोहि ।। अर्थ :-''जिसके पास विद्यावल है, जो विमान पर चढ़ कर कैलाश गया था, जिसने तीनों भुवनों में अपनी ख्याति करली थी, ऐसे वप्युडे (बेचारे) की कितनी (क्या बात है" ॥३०॥ सब बौने को राजा ने बुलाया और पूछा, “तू मुझसे (अपनी) वाता सतभाव (सत्य रूप) से कह । हे वीर! तू छिपा हुषा क्यों है ? तू किस कार्य के लिये पाया है जिसे प्रकाशित नहीं करता (बताता) है? ||३७१।। हजार / आकारम् - बुनाना । पयास् / प्रकाशय - प्रकाशिन, करमा । ! ३७२-३७३ । गात मलखण कहियइ कार, मूडिउ मडु चोटी फरहराइ । जिहि भोयरा भित्या कोय, सो किम परिणद राजा धोय ॥ जाति विहीण देव वावराउ, बार वार सत चूफर भगउ । पाछह लोगु हसइ मो बघणु, फूजर कंठि कि मोहइ रयण । अर्थ :-(बौन ने कहा ) "जिसका शरीर लक्षणों रहित है, उसे क्या कहें ? जिसका शिर मुडा हुआ है तथा चोटी फहरा रही है, जिसने मिक्षा का भोजन किया है वह राजा की कन्या से कैसे विवाह कर सकता है ?" ॥३७२।। "हे देव 1 जो जाति विहीन तथा बौना है तथा बार बार सत्य से चूके वचन बोलता है और पीछे से जिसके वचनों को सुनकर लोग हंसते हैं। क्या
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy