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________________ जिणवस चरित । ३५६-३६० ] हथिया पानि खंभ पंधि ठाउ, जय-जयकार लोकु सहु किया । हाथि जोडि फुरिण विणवह तेव', पुत्ति लगण छिकार्वाह देव । बइठो मार गिरणेसर भवरण, पूर्वाह निय गुरु कारजु महवणु । सब पुरु सामि प्रभो भयड, हामित्र पणे वावणे परिउ ।। ___ अर्थ :-(तदनंतर) हाथी को लाकर उसके स्थान पर उराने खंभे मे बांध दिया। (इससे) सभी लोगों ने जय जयकार की। हाथ जोड़ कर फिर यह बौना विनय करने लगा, हे देव, "(अब) अपनी पुत्री का लग्न दिखाइये (विवाह कीजिए)" ||३५.६। राजा जिन मंदिर में जाकर बैठ गया तथा वहाँ पर अपने) गुरु से उस राजा । सायंचय पूछ । गो पुरुषों को आश्चर्य हुना कि इस बौने ने हाथी को अक्षत (बिना किसी चोट फेट के) पकड़ लिया ॥३६॥ महवरघु। मधवन - इन्द्र १. मूल पाठ - 'सेव' अद्भुत कार्यों का वर्णन ३६१-३६२ । भवियज बात कह निव सम्वणु, एही बात अचंभउ कवणु । फोडि एग्यारह नूवा खेलि, माता पिता छोडि गउ मेसि ।। अहि परकम्म प्रइसा सहज, नह को पौरक्ष केत्तर कहज । मो मोहिन पूतलिय पहाय, पुण्यवंत को सका पहारण ।। अर्थ :-श्रमण (गुरु) ने निश्चय रूप से कहा, हे भव्यो, ऐसी (इस)
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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