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________________ बौने के रूप में सूड एवं पूछ को पकड़ लिया । जिनदत्त ने उसको उसके भव (जन्म) का जान कराते हुये पकड़ा ।।३५५११ उसने एक पहर सक एकह कर घृणा : चंद्र श्रेष्क मज लेन-दिम् हो गया । जिम येष्ठ गजराज की गहरी पर्जना थी भौर जिस श्रेष्ठ मज के मय से पृथ्वी भागती घी ॥३५६॥ साव .. लापय् - बुलवाना, कहलाना । [ ३५७-३५८ ] जहि गयवर का मोह हियउ, सो पावसे विललो कियउ । शो गयवर गश्वर हर माण, रण गराइ सोहहि माल पराण ॥ बेडु ड स पहारहि करह, तहि बावणे जोति निरकरइ । धरि वंतूसरि मूठिहि हयउ, चढिवि फंधि करि अंकुस तया ॥ अर्थ :-जिस हाथी का मोटा (बड़ा) हृदय था, उसको उस बौने ने रुवामा (रोने पर तुला हुना) कर दिया । ओ गज श्रेष्ठ गजों के मान (अभिमान) का हनन करता था और सिंह को नहीं गिनता था, जो ऐसे प्रक्षत प्राणों का था ||३५७|| जो अपने प्रहारों से (अपने) बड़े बन्धन को जूट-वालों के जुड़े (का सा) कर डालता था, उसे वह बौना निश्चित रूप से पराभूत कर रहा है । द्राथी के पुष्ट दांतों को पकड़ कर उसने मुट्ठी मारी तथा कन्भे पर चढ़कर अकृण ले लिया 1।३५८।। ऊसर असल - पुष्ट । , १. मूल पाठ - मोटट ३. इस चरण का दूसरा पाठ :–बावण जंघ अब ललि नीसए। अयं :-उसके (हाथी के) दोनों जंघामों के नीचे से वह बौना निकल गया।
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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