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________________ (२०१से२१६) सिंघल द्वीप का उस समय धनवाहन नाम का सम्राट श्रा । उसके श्रीमती नाम की राजकुमारी थी जो एक मसंकर म्याषिसे पीड़ित थी। जो भी व्यक्ति रात्रि को उसका पहरा देता था, वहीं मृत्यु को प्राप्त हो जाता था। इस कार्य के लिये राजा ने पहरे पर भेजने के लिये प्रत्येक परिवार को प्रवसर बाँट रक्खा या । उस दिन एक मालिन के इकलौते पुत्र को शरी थी, इसलिये यह प्रातः काल से ही रो रही थी । जिनदत्त उसके करुण विलाप को नहीं सह सका और उसके पुत्र के स्थान पर राजकुमारी के पास स्वयं जाने को नेयार हो गया। (२१ से २३२) सायंकाल को जव वह जिनदत्त राजा को पीडित कन्या के पास पहरा देने गया, तो राजा उसे देखकर बड़ा दुखित हुआ और राजकुमारी की निंदा करने लगा। जिनदत्त राजकुमारी से मिला 1 राजकुमारी ने उसके रूप, यौवन एवं प्राकक व्यक्तित्व को देखकर उससे वापस चले जाने की प्रार्थना की । ये बातचीत करने लगे और इसी बीच में राजकुमारी को निद्रा मागयी । बातचीत्त के समय जिनदत्त ने उसके मुंह में एक सर्प देख लिया । जब राजकुमारो सो गई, तो वह् श्मशान में जाकर एक नर-मुड उठा लाया और उसे राजकुमारी को खाट के नीचे रख दिया और तलवार हाथ में लेकर स्वयं वहीं छिप गया । रात्रि को राजकुमारी के मुख में से वह भयंकर काला सर्प निकला । वह नर मुड के पास जाकर उसे इसने लगा । जिनदत्त ने जब यह देखा तो उसने सर्प को पूछ पकड़ कर घुमाया, जिससे वह व्याकुल होगया और फिर उसे पोटली में बांध कर निःशंक सोगया । (२३३से २३६) प्रातः होने पर राजा को जिनदत्त के जीवित रहने के समाचार मालूम पड़े तो वह तुरन्त ही कुमारी के महल में आया पौर सारी स्थिति से अवगत हुआ । राजा ने श्रीमती के साथ जिनदत्त का विवाह कर दिया ! कुछ दिनों तक वे दोनों बहीं सुखपूर्वक रहे और जब जलपान पलने लगा तो वह भी राजा से प्राज्ञा लेकर श्रीमती के साथ रवाना हुआ । राजा ने विदा करते हुये उसे अपार सम्पत्ति दी ।
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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