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________________ सिंहल द्वीप-वर्णन ७१ तुम्हारे इस पुत्र को और मुझको ( दोनों को ) आज उसे मारना होगा ।।२१६॥ बातें कहते हुय तीसरा पहर हो गया । डोम आया और उसने पुकार लगाई तो जिनदत्त हेम करके कहने लगा कि संध्या समय आकर मैं संवा करूंगा ।।२१।। उह – उभय मास गठि पहरण परीरयउ, बोर गठि करि जूडउ व्यत्र । सह कर खडग फरी फटकाइ, खांति संबोल वसग सो माद ।। चढत अवास दीठ जघु राइ, घणवाहग बोलद को बाद । कवणे कहिन राबस्यों खरे, यह देव जाइ बसण ऊसरद ।। अर्थ :-मल्ल गांठ देकर और द्वन्द्व युद्ध के लिय] उसने कपड़े पहन लिए तथा वीर सथि कर उसने बालों को बांधा। हाथ में तलवार लेकर फर्ग (लाठी) को फटकाता (फटकारता) हुआ पान खाता हुअा वह सोने के लिये चला ।।२१।। महन पर चढत हुये जब उसे गजा ने देखा तो पूछा कि ''कौन जा रहा है ? किसी ने राजा से खड़े होकर निवेदन किया हे देव ! यह पाग पर सोने के लिए जा रहा है ॥२१॥ तवोल - पान । को - कौन । । २२०-२२१ ] देखि राउ पछतावउ करा, अइसन बोर ऊसरा मरइ । धिय पापिणी लियो ऊचालि, जितनु वेखर तितु देहि निकालि ॥
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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