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________________ सिंहल द्वीप-वन फिर जिनदत्त उससे कहने लगा "भली बुरी जो भी हो, वह सबसे कहना चाहिए । जो बात तुम्हारे मन में हो, ऐ मालिन, बात वह तुम्हे कहनी चाहिए, जिससे कि तुम्हारा दुःख कोई दूर कर सके ।। २६ ।। [ २१०-२११ ] कहद्द वात बूढी लिखी, इहि काल इनि जो सहि जागइ राति उहारण इजि कुवरि बुरी हो टेव, दिन दिन जो हि जागइ पहिर हृषक, सो नर भोल ( प ) छोड़ मुकऊ विहान | सो पर वीस मारणसु मार देव । (न) खियइ मुषक ॥ उह उभय । अर्थ :- वह वृद्धा रो रो कर कहने लगी, "इस समय यहाँ एक सा की काया है जो कोई वहां रात्रि में ( उसके साथ ) दूसरा ( होकर ) जागता रहता है वह व्यक्ति सबेरे (दुसरे दिन ) मृत दिखाई पड़ता है ।।१०।। - राज कन्या की यह बहुत बुरी आदत है कि वह दिन प्रति दिन मनुष्यों को मारती है। जो वहाँ जागता है और पहरा देता है, वह मोला आदमी मग दिखाई पड़ता है ।।२११|| रा [ २१२-२१३ J एकु प्रूतु एकति घरवाहि पहिर प्रजु तु सो मरह, मालिरण तरणी सुरगी जयु वत्त, हर बात पूछियड़ मकाजु, ६ε कहि गउ डोमु कसर] तरहि । तह बुख, पूल हियउ गहवर शाहूट त्रि उनसे जिणवत्त् । पूछित रु दुनु सारज भ्रातृ । अर्थ :- ( इस घर में ) इकलौता एक ही पुत्र है और डोम (वधिक ) कह गया है कि श्राज पहरे का ओसरा उसी का है। आज के पहरे में मेरा वह पुत्र मरेगा, इसी दुःख से मेरा हृदय व्याकुल हो रहा है ।।२१२ ||
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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