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________________ सिंहल द्वीप-वन [ २०२ - २०३ 1 सहि घरवाह पटु चक्कत, नव निहि चउवह रमण भण्डार, तमु कुमर पिरिणमति केह, जो ताहि महिर निसि पसरद जो असराल दोष भोगवह 1 विजयादे राणी लइ विपाधि पोडिय कारषु व्हिसही सो जुन सुपियार ॥ असु देह । एव ॥ अर्थ :- उस ( द्वीप) का प्रभु घनवाहन नाम का चक्रवति था जो निरंतर उस द्वीप का योग ( राज्य ) करता था । उसके भण्डार में नव निधिय सथा चौदह रस्त थे, और अत्यन्त प्रिष विजमादे उसकी रानी थी || २०२ ।। उसके श्रीमती नाम को राजकुमारी थी जिस की देह व्याधि के कारप पीडित थी । जो भी आदमी निणा का प्रवेश होने पर उसका पहरा (पहर पहर तक की रखवाली करना) देता था वह मनुष्य किसी भी कारण पर जनता या १२०३ | २०४ - २०३ मंत्री मंतु किय भलि जोड़, रायल लोग तिन्हि लयउ हकारि, कह मंति तु अस करे, एक प्रूतु तद्धि मालिखि केरड, घरि घरि पत कहीय यात जां बस सबु कोइ । बलि बसारि ॥ अपर्ण ऊसर तुम पडियड 2 पहिरउ दे । ऊसरंज ॥ अर्थ:-मंत्रियों ने फिर मलाई देखकर मंत्रणा की, क्योंकि सभी घरों से पात्र (पहरा देने के उपयुक्त युवक ) रहते थे । इसलिये उन्होंने सभी लोगों चो (मंत्रणा के लिये बुलाया और उन्हें बैठाकर उनसे बात कही || २०४४ | मंत्रियों ने कहा "आप लोग ऐसा करो कि अपनेर ओसरे (पागे) पर
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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