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पेठ
(७७ से १०५) एक दिन वह नन्दन बन गया और वहाँ उसने एक पापा को पुतली को देखा और उसकी सुन्दरता की प्रशंसा करने लगा । अब यह भी ऐसी ही किसी सुंदरी से विवाह करने की इच्छा करने लगा । जुवारियों ने जिनदत्त को जब इस स्थिति में बड़ा प्रसन्न हुआ । जुवारियों ने सेन से अपार धन प्राप्त किया। बुलाकर सेठ ने पूछा कि यह प्रतिमा किस स्त्री की थी। शिल्पकार ने बताया कि यह चंगपुरी के नगर सेठ विमलसेट की कन्या विमलामती की प्रतिमा थी । सेठ ने चित्रकार से अपने पुत्र जिनदत्त का मिश्र उतरवाया और एक ब्राह्मण को वह चित्र देकर चंपापुर भेजा ।
शिल्पकार को
(१०६ से १२७) विमलसेठ उस चित्र को देखकर एवं माता पिता के सम्बन्ध में जानकारी कर विमलामती का विवाह जिनदत्त के साथ करने की स्वीकृति दी । बसन्तपुर से बड़ी धूम धाम से बारात चम्पापुर के लिये रवाना हुई। बारात में हाथी, घोडे, रथ, पालकी आदि सभी थे। दोनों का विवाह हो गया और बारात वसन्तपुर लौट श्राई | जिनदत्त और विमलामती सामन्य रहने लगे ।
(१२८ से १४५ ) एक दिन पालकी में बैठकर जिनदत्त चैत्यालय जा रहा था कि उसकी जुवारियों से भेंट हो गयी । उन्होंने जिनदत्त को जुम्रा खेलने का निमन्त्रण दिया । जिनदत्त उनकी बात टाल न सका । वह जुझा खेलने लगे और जिनदत्त उसमें ११ करोड द्रव्य हार गया। जिनदत्त जब दांव हार कर घर जाने लगा तो जुवारियों ने उसे बिना रुपया चुकाये जाने नहीं दिया । जिनदत्त ने अपना आदमी अपने पिता के मण्डारी ( मुनीम ) के पान भेजा लेकिन उसने जुप्रा में हारे हुये रुपयों को चुकाने से मना कर दिया । आखिर उसे मिलावती की कांचली ६ करोड रुपयों में बेचनी पड़ी। जिनदत्त को इससे अत्यधिक दुःख हुआ। वह घर आकर विदेश जाकर धन कमाने की सोचने लगा |
( १४६ मे १५८ ) पत्र अपने श्वसुर के यहां से
इसी समय उसने एक चाल चली और एक झूठा मंगा लिया जिसमें उसको बुलाने के लिये लिखा
सात