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________________ व्यापार के लिये प्रस्थान अर्थ :-- पानी में दुई र मगर, मत्स्य एवं घडियाल थे तथा उस अगम पानी का पार भी नहीं सूझता था । जल के भय से सब शरीर कांपता था तथा प्रचंड लहरों से पानी भको बा १९६६ : समुद्र गड़गड़ा कर गर्जना करता था तथा वह समुद्र सौ सौ योजन गहरा था। वह मरजीबा डुबकी लेकर सुख पूर्वक मुंह को बंद किए हुये निकलता था; क्योंकि यदि मच्छों को मालूम पड़ जाता तो उसे निगम ही जाते ।। १६५॥ घडियार घडियाल | पमंड प्रचंड | - रहम- रमम् - सुख | [ बेला are afs जब भंभा पाटणु वाए मयादीउ हूतद सहजावती बेगि १६६-१६७ ] चलेय, कवम् दीड वेति परहरिय | बोधि भयो वोहिथ कुंडलपुरु खोलि ।। नोसरिउ, पाटण तिलज दीउ पसरिउ । परिहरउ, गउ छोहिथ फोफल ही पुर' ॥ बोहिथ जहाज फोफ - - अर्थ :- जब वे वेगा नगर को छोड़ कर चले तब कवरप द्वीप भी उन्होंने शीघ्र ही छोड दिया। मंभा पाटर बीच ही में छोड़ कर उन्होंने जहाज कनपुर स्थींच लिया ।। १६६१। १ मुनपा मदन द्वीप से होकर वे निकले तथा पाटल तिलक द्वीप में प्रवेश किया ( तदनंतर ) उन्होंने शीघ्र ही सहजावती को छोड़ा और वह जहाज फोफलपूरी [ पुगफल-सुपारी की नगरी) को गया ।। १६७।। ६५ - उद्द - उदर । गूगफल - सुपारी ।
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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