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________________ ६२ पूतु न जाउ घण्णुवेड सेठि बाखर फुल जिरणदत्त चरित आदि, कोडि सोंग भर लइ जे वाति । बिए, वुइ वो भरि वेरणालए । अर्थ :- गूढ खोखयाही, बाधा, छोला, खोखर, कान्हा, सूढा, महामति सवेल का ( सूत्र ) सुमति, सधारु एवं चंद का (पुत्र) वील्ह जले || १८३ ।। उन्होंने बाजरों में क्या है, यह जानते हुये की कांडिया एक सींगों को बैलों पर लाद लिया । धनदेव सेठ ने भी अपार सामग्री दी जिससे दो जहाज भर लिये और बेणा नगर ( को जाने का संकल्प लिया ||१८४॥ [ १०५ - १८६ | अवध, कोडि खडा तिरिए नोए घाधू पीता चालिउ म । धनु नाम मागे ज प्रसु सारु पाटल चालित भूतु ॥ जिसुकं हिय पंच परमेठि, सो पुर्णा चासि जिरावरु पूज करs तिहुकाल, सोपुणु चालिउ दंता सेठि । सतु गुणपाल अर्थ :- और धावू तथा गीता मी चले तथा करोड बरे चमर ( साथ ) लिए | नाग का लड़का धन्ना तथा धूल भी रेशमी ( मूल्यवान पाट लेकर ) चना ।। १८५ ।। जिसके हृदय में पंच परमेष्टि थे ऐसा वह ता सेठ भी चला। जो जिनेन्द्र भगवान की तीनों काल पूजा करता था ऐसा गुगपाल भी साथ चना ।। १६६।। | १८०३ - १८८ [ पदार्थ धरहि । चले ति रवरा परीक्षा कहि थले ति मोलु सघ वनारे भए इकठा को पंचदश मिलिए आइ ।। सबु यरिगजारे चतुर छल्ल, बारह सहस चले भरि बइल्ल | जो मतिद्दोष अबूझ प्रजाया, सव महि उबहित परधान ||
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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